अमेरिकी रेमिटेंस टैक्स: भारत को सालाना $18 बिलियन तक का आर्थिक झटका

अमेरिकी रेमिटेंस टैक्स: भारत को सालाना $18 बिलियन तक का आर्थिक झटका
विशेष रिपोर्ट | आर्थिक संवाददाता: विवेक मिश्रा | प्रकाशन: 4 जुलाई, 2025
अमेरिकी रेमिटेंस टैक्स क्या है?
अमेरिकी रेमिटेंस टैक्स एक नया कर है जिसे अमेरिकी सीनेट ने हाल ही में पास किया है और जिसे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने “बिग ब्यूटीफुल टैक्स बिल” कहा है। इस कानून का उद्देश्य अमेरिका से विदेशों में भेजे जा रहे पैसों पर कर लगाना है। इससे भारत जैसे देशों को बड़ा आर्थिक झटका लग सकता है।
रेमिटेंस टैक्स की प्रमुख विशेषताएं
कर की दर और दायरा
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प्रारंभिक दर 3.5% तय की गई थी लेकिन सीनेट ने इसे 1% कर दिया है
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अंतिम रूप से 3.5% रेमिटेंस टैक्स ही लागू होने की संभावना
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यह टैक्स पैसा भेजने वाले व्यक्ति पर लागू होगा
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ग्रीन कार्ड धारक और गैर-आप्रवासी वीजा धारक भी इसके दायरे में आएंगे
कब से लागू होगा?
यह टैक्स 1 जनवरी, 2026 से प्रभाव में आएगा। हालांकि, यह उन भारतीय नागरिकों पर लागू नहीं होगा जो अमेरिकी बैंक खातों से भारतीय खातों में पैसा ट्रांसफर करते हैं या अमेरिका में शेयर मार्केट में निवेश करते हैं।
भारत पर सीधा असर
भारत को मिलने वाले रेमिटेंस पर प्रहार
भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार, अमेरिका भारत को हर साल लगभग $32.9 बिलियन रेमिटेंस भेजता है। यह अमेरिकी रेमिटेंस टैक्स लागू होने से भारी प्रभाव पड़ेगा।
यदि 3.5% टैक्स लगाया गया तो भारतीय परिवारों को हर साल $1.12 बिलियन अतिरिक्त देना होगा। इससे देश की अर्थव्यवस्था और विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ेगा।
व्यक्तिगत स्तर पर असर
कुछ संभावित उदाहरण:
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$1,000 भेजने पर ➝ $35 टैक्स
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₹1 लाख भेजने पर ➝ ₹5,000 टैक्स
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$500 प्रति माह भेजने पर ➝ $210 सालाना टैक्स
यह खासकर उन परिवारों को प्रभावित करेगा जो विदेशों में बसे रिश्तेदारों से पैसे पर निर्भर रहते हैं।
अमेरिकी रेमिटेंस टैक्स और भारतीय मुद्रा
GTRI के संस्थापक अजय श्रीवास्तव के अनुसार, यदि रेमिटेंस में 10-15% की गिरावट आती है तो भारत को $12–18 बिलियन तक का नुकसान हो सकता है। इसका असर भारतीय रुपए पर भी पड़ेगा, जो डॉलर के मुकाबले ₹1–1.5 तक कमजोर हो सकता है।
इससे आयात महंगा होगा और मुद्रास्फीति बढ़ सकती है।
सरकार की तैयारी
वित्त मंत्रालय की भूमिका
भारत सरकार द्विपक्षीय वार्ता के जरिए अमेरिकी अधिकारियों से कर में छूट या बदलाव की मांग कर रही है। विदेश मंत्रालय और वित्त मंत्रालय मिलकर समाधान निकालने की कोशिश कर रहे हैं।
आरबीआई की पहल
भारतीय रिज़र्व बैंक बैंकों को नए ढांचे के अनुरूप तैयार कर रहा है और डिजिटल रेमिटेंस सिस्टम को और मजबूत किया जा रहा है।
किन राज्यों और वर्गों पर सबसे ज्यादा असर?
प्रभावित राज्य:
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केरल – सबसे ज्यादा रेमिटेंस पर निर्भर
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पंजाब – बड़ी प्रवासी आबादी
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गुजरात – व्यापारिक समुदाय प्रभावित
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तमिलनाडु – IT पेशेवरों की अधिकता
प्रभावित समुदाय:
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IT पेशेवर (H-1B वीजा धारक)
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छोटे व्यापारी (मोटल, गैस स्टेशन संचालक)
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डॉक्टर्स, इंजीनियर
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F-1 वीजा पर काम करने वाले छात्र
आम जनता के लिए सुझाव
क्या करें?
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रेमिटेंस की आवृत्ति घटाएं: कम बार, बड़ी राशि भेजना
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प्लेटफॉर्म तुलना करें: जहां फीस और टैक्स कम लगे
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टैक्स सलाह लें: अपने चार्टर्ड अकाउंटेंट से परामर्श करें
दीर्घकालिक उपाय:
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वैकल्पिक चैनल: अन्य देशों से पैसे भेजना
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निवेश के विकल्प: अमेरिकी स्टॉक्स में निवेश
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कानूनी सलाह: टैक्स बोझ कम करने की विधियां
भविष्य की संभावना
अमेरिकी राजनीति में भारतीय समुदाय
भारतीय समुदाय अमेरिकी राज्यों में राजनीतिक रूप से प्रभावी हो रहा है। इसलिए उन राज्यों में दबाव बढ़ सकता है जहां भारतीय मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं।
अमेरिका पर भी असर
कम रेमिटेंस का मतलब है कम ट्रांजैक्शन फीस और बैंकिंग लाभ। इससे अमेरिकी कंपनियों की आमदनी भी प्रभावित होगी।
निष्कर्ष
अमेरिकी रेमिटेंस टैक्स भारत के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है। सरकार, बैंक, और आम नागरिकों को मिलकर रणनीति बनानी होगी ताकि इसका असर न्यूनतम हो सके।
🔗 आंतरिक लिंक सुझाव:
“विदेशी निवेश में गिरावट: भारत की आर्थिक रणनीति पर असर”
➡ example.com/videshi-nivesh-girawat