डॉलर का दबदबा खत्म? 87.31 रुपये पर असर और ट्रंप की चिंता

डॉलर का दबदबा अब पहले जैसा नहीं रहा और दुनिया की अर्थव्यवस्था में बड़ा बदलाव नजर आने लगा है। जानी-मानी रिपोर्ट और अमेरिकी अर्थशास्त्री केनेथ रोगोफ की चेतावनी के बाद यह साफ हो गया है कि कई देश अब अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता घटा रहे हैं और यूरो, युआन तथा क्रिप्टोकरेंसी जैसे विकल्पों की ओर रुख कर रहे हैं।
डॉलर का दबदबा क्यों कमजोर पड़ रहा है?
रिपोर्ट में बताया गया है कि लोग केवल डॉलर पर भरोसा नहीं करना चाहते। डॉलर का दबदबा धीरे-धीरे यूरो, चीन की मुद्रा युआन (Renminbi) और डिजिटल करेंसी यानी क्रिप्टोकरेंसी की ओर खिसक रहा है। इससे अमेरिका की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत कमजोर हो सकती है।
ट्रंप की चिंता क्यों बढ़ी?
केनेथ रोगोफ का कहना है कि अगर ज्यादा देश डॉलर से दूरी बनाते हैं तो अमेरिका की आर्थिक नीतियां, खासकर आर्थिक रोक (sanction) की रणनीति कमजोर होगी। डोनाल्ड ट्रंप जैसे नेता हमेशा से डॉलर को अमेरिकी शक्ति का बड़ा हथियार मानते रहे हैं।
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अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर असर
विशेषज्ञों के अनुसार अगर डॉलर का दबदबा घटा तो अमेरिका को उधार लेने पर ज्यादा ब्याज चुकाना पड़ेगा। पहले से ही भारी कर्ज में डूबे अमेरिका पर अतिरिक्त दबाव बढ़ सकता है। रोगोफ ने यह भी कहा कि अमेरिकी ट्रेजरी बिलों में विदेशी निवेश कम हो सकता है जिससे बाहर से पैसा जुटाना मुश्किल होगा।
भारत के लिए नए अवसर
जहां अमेरिका के लिए यह खबर चिंता बढ़ाने वाली है वहीं भारत जैसे देशों को इससे फायदा हो सकता है। अगर यूरो और युआन जैसी करेंसी मजबूत होती हैं और डॉलर का दबदबा घटता है तो भारत की मुद्रा रुपया संभल सकता है। फिलहाल एक डॉलर की कीमत 87.31 रुपये है। आने वाले समय में डॉलर की कमजोरी से रुपया मजबूत हो सकता है।
निष्कर्ष
दुनिया की अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे बहुध्रुवीय होती जा रही है जहां डॉलर अकेला दबदबा बनाए नहीं रख पाएगा। यूरो, युआन और क्रिप्टोकरेंसी के बढ़ते उपयोग से वैश्विक शक्ति संतुलन बदल सकता है। यह बदलाव अमेरिका के लिए झटका जरूर है लेकिन भारत जैसे उभरते देशों को नए अवसर प्रदान कर सकता है।
External Link: Economic Times Report
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