NATO में दरार: ट्रंप की नीति से फ्रांस-इटली ने ठुकराया अमेरिकी हथियार प्रस्ताव

NATO में दरार अब और गहरा होता दिख रहा है। ट्रंप की वापसी के साथ अंतरराष्ट्रीय राजनीति में खलबली मची है। यूरोपीय देशों, खासकर फ्रांस और इटली ने अमेरिकी हथियार योजना को ठुकराकर इस नए दौर की शुरुआत कर दी है।
ट्रंप की हथियार योजना का विरोध: यूरोप की नई रणनीति
फ्रांस और इटली ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उस योजना में शामिल होने से इनकार कर दिया है जिसके तहत NATO देश अमेरिकी हथियार खरीदकर यूक्रेन भेजते। यह केवल राजनयिक विरोध नहीं बल्कि यूरोपीय एकता और अमेरिकी प्रभुत्व के बीच तनाव का संकेत है। फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रों ने यूरोपीय रक्षा उद्योग को प्राथमिकता देने की बात की है। यह अमेरिकी रक्षा निर्माताओं के लिए एक कड़ी चुनौती बन चुका है।नाटो के रक्षा बजट दबाव: 5% की मांग
ट्रंप ने NATO सदस्यों से जीडीपी का 5% रक्षा बजट करने की मांग की है, जो वर्तमान 2% के लक्ष्य से कहीं अधिक है। इससे यूरोपीय देशों पर आर्थिक दबाव बढ़ गया है। फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन पहले ही आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं, ऐसे में यह मांग विरोध को जन्म दे रही है।यूरोपीय संघ की आंतरिक समस्याएं और ट्रंप का दबाव
- आर्थिक संकट: ऊर्जा, महंगाई और युद्ध से बढ़े खर्च के बीच अतिरिक्त रक्षा बजट एक बोझ है।
- राजनीतिक अस्थिरता: कई देशों में सरकारें अस्थिर हैं, और जनता में असंतोष है।
- स्वायत्त रक्षा उद्योग: यूरोप अब अमेरिकी हथियारों पर निर्भर नहीं रहना चाहता।
यूक्रेन-रूस युद्ध पर प्रभाव
फ्रांस और इटली के इस फैसले से यूक्रेन की रणनीति प्रभावित हो सकती है। यूरोपीय हथियारों की भूमिका बढ़ेगी, लेकिन समन्वय एक चुनौती रहेगा। रूस इस NATO में दरार का लाभ उठाकर अपना रणनीतिक फायदा बढ़ा सकता है।भारत पर प्रभाव: अवसर और चुनौतियां
- रक्षा साझेदारी: भारत-फ्रांस और भारत-इटली रक्षा सहयोग को नया बल मिलेगा।
- ऊर्जा सुरक्षा: भारत की रूस से तेल खरीद पर बना दबाव अब घट सकता है।
- बहुध्रुवीय विश्व: भारत की विदेश नीति को अब अधिक समर्थन मिल सकता है।
- नए व्यापार अवसर: यूरोपीय देशों की नई नीति भारतीय उद्योगों के लिए अनुकूल हो सकती है।