अमेरिका-जापान ट्रेड डील विवाद: टैरिफ पर बढ़ा टकराव

अमेरिका-जापान ट्रेड डील विवाद से बिगड़े रिश्ते
अमेरिका-जापान ट्रेड डील इस समय बड़े विवाद में है और दोनों देशों के बीच टैरिफ को लेकर गहरा टकराव पैदा हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जापान यात्रा से ठीक पहले जापान ने अमेरिका के साथ चल रही व्यापार वार्ता को स्थगित कर दिया। जापान के प्रमुख वार्ताकार रोसेई अकाजावा ने अमेरिका का अपना दौरा अचानक रद्द कर दिया, जिससे यह साफ हो गया कि टैरिफ को लेकर सहमति बन पाना अभी मुश्किल है।
भारत के बाद जापान भी टकराव की राह पर
यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब अमेरिका-भारत के बीच भी टैरिफ को लेकर बड़ा संघर्ष हुआ। अमेरिका ने भारत पर 50% तक का टैरिफ लागू कर दिया है। अब जापान के साथ भी वही स्थिति बन रही है। अमेरिका-जापान ट्रेड डील विवाद को देखकर यह स्पष्ट है कि ट्रंप प्रशासन अपने सहयोगी देशों पर भी आर्थिक दबाव डालने की कोशिश कर रहा है।
जापान-अमेरिका ट्रेड डील संकट: मोदी दौरे से पहले क्यों बढ़ा विवाद?
जापान का 550 अरब डॉलर निवेश प्रस्ताव
जापान ने अमेरिका के साथ समझौते में टैरिफ घटाने के बदले 550 अरब डॉलर का निवेश करने का प्रस्ताव दिया था। इस निवेश पैकेज को अंतिम रूप देने के लिए अकाजावा अमेरिका जाने वाले थे, लेकिन आखिरी समय पर उन्होंने अपनी यात्रा रद्द कर दी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस पैकेज पर विवादित बयान दिया था कि “यह हमारा पैसा है और इसका 90% फायदा अमेरिका को मिलेगा।” इस बयान ने जापानी पक्ष को नाराज कर दिया और यही कारण है कि अब यह अमेरिका-जापान ट्रेड डील अटक गई है।
ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री पर दबाव
अमेरिका की सबसे बड़ी मांग है कि जापान अपनी ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में अमेरिकी गाड़ियों के लिए बाजार खोले। लेकिन जापान की कार इंडस्ट्री दुनिया की सबसे मजबूत उद्योगों में से एक है जिसमें टोयोटा, होंडा और निसान जैसी कंपनियां वैश्विक स्तर पर अग्रणी हैं। अगर जापान अमेरिकी कंपनियों को अपनी घरेलू कंपनियों जितना अवसर देता है तो उसकी इंडस्ट्री को गहरा नुकसान हो सकता है। इसलिए जापान अमेरिका की मांगों को स्वीकार नहीं करना चाहता। यही अमेरिका-जापान टैरिफ विवाद की सबसे बड़ी वजह है।
भारत-अमेरिका विवाद से समानताएं
भारत और अमेरिका के बीच भी यही समस्या सामने आई थी। ट्रंप प्रशासन चाहता था कि भारत इलेक्ट्रॉनिक सामान, मेडिकल उपकरण और कृषि उत्पादों पर आयात शुल्क कम करे। लेकिन भारत ने कहा कि ऐसा करने से घरेलू उद्योग और किसान बुरी तरह प्रभावित होंगे। नतीजा यह हुआ कि अमेरिका ने भारत पर अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया। अब वही स्थिति जापान के साथ भी देखने को मिल रही है।
अमेरिका फर्स्ट नीति और टैरिफ हथियार
ट्रंप प्रशासन शुरू से ही “अमेरिका फर्स्ट” नीति पर काम कर रहा है। इसके तहत वह व्यापार घाटा कम करने के लिए टैरिफ को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है। अमेरिका का कहना है कि वह अन्य देशों से ज्यादा खरीदता है और कम बेचता है, इसलिए घाटा बढ़ रहा है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि टैरिफ बढ़ाने से न केवल सहयोगी देश नाराज हो रहे हैं बल्कि इससे अमेरिका की छवि पर भी नकारात्मक असर पड़ रहा है।
जापान का सख्त रुख
जापान ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा। जापानी प्रवक्ता योशिमासा हयाशी ने कहा कि अमेरिका के साथ कुछ बिंदुओं पर प्रशासनिक स्तर पर और बातचीत की आवश्यकता है, इसलिए दौरा रद्द किया गया। जापानी पक्ष का कहना है कि निवेश तभी होगा जब दोनों देशों को बराबर लाभ मिलेगा।
भारत-जापान सहयोग की संभावनाएं
विशेषज्ञ मानते हैं कि इस स्थिति में भारत और जापान को आपस में सहयोग बढ़ाना चाहिए। इंफोसिस के पूर्व CFO मोहनदास पई का कहना है कि जापान अगले 20 वर्षों में हर साल 30-40 अरब डॉलर का निवेश भारत में कर सकता है। ऐसे में भारत-जापान का मुक्त व्यापार समझौता दोनों देशों के लिए लाभकारी साबित हो सकता है और अमेरिका पर निर्भरता कम हो सकती है।
निष्कर्ष
अमेरिका-जापान टैरिफ विवाद यह दिखाता है कि अब बड़े देश भी अमेरिकी दबाव में आने से इनकार कर रहे हैं। जिस तरह भारत ने अपनी शर्तों पर अडिग रहते हुए अमेरिकी मांगों को खारिज किया, उसी तरह जापान ने भी संकेत दिया है कि वह ट्रंप प्रशासन की कठोर नीतियों के आगे नहीं झुकेगा। आने वाले समय में यह विवाद वैश्विक व्यापार समीकरणों को गहराई से प्रभावित कर सकता है।
External Link Suggestion: Reuters
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