BRICS डी-डॉलरीकरण: क्या डॉलर का युग खत्म हो रहा है? वैश्विक आर्थिक बदलाव 2025

BRICS की चुनौती: डॉलर का राज खत्म होने की शुरुआत?
अमेरिकी मुद्रा के एकाधिकार को तोड़ने की महत्वाकांक्षी योजना लेखक: विवेक मिश्रा— भूमिका: नई वैश्विक व्यवस्था का उदय
दुनिया में एक नया आर्थिक युग शुरू हो रहा है। BRICS देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) का गठबंधन अमेरिकी डॉलर के एकाधिकार को चुनौती देने के लिए तैयार है। यह केवल एक आर्थिक परिवर्तन नहीं है, बल्कि एक भू-राजनीतिक क्रांति है जो वैश्विक शक्ति संतुलन को बदलने की क्षमता रखती है।डी-डॉलरीकरण: क्या है और क्यों जरूरी?
डी-डॉलरीकरण का मतलब है अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वित्तीय लेनदेन में अमेरिकी डॉलर की निर्भरता को कम करना। BRICS देशों के पास अपनी मुद्रा बनाने के कई कारण हैं, जिनमें हाल की वैश्विक वित्तीय चुनौतियां और अमेरिकी आक्रामक विदेश नीतियां शामिल हैं। ये देश अपने आर्थिक हितों की बेहतर सेवा करना चाहते हैं और डॉलर पर वैश्विक निर्भरता को कम करना चाहते हैं।BRICS की रणनीति: सुनहरा भविष्य
BRICS देश एक नई रिज़र्व मुद्रा स्थापित करने की चर्चा कर रहे हैं जो सोने से समर्थित हो सकती है और “यूनिट” के नाम से जानी जाती है। यह मुद्रा अमेरिकी डॉलर के विकल्प के रूप में काम करेगी और इन देशों को अपनी आर्थिक स्वतंत्रता दिखाने का मौका देगी। मुख्य विशेषताएं: – *स्वर्ण समर्थित मुद्रा*: यह नई मुद्रा सोने के भंडार पर आधारित हो सकती है – *बहुपक्षीय व्यापार*: सदस्य देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा – *वैकल्पिक भुगतान प्रणाली*: SWIFT के विकल्प के रूप में नई प्रणालीअमेरिकी अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
तत्काल चुनौतियां: डॉलर के एकाधिकार को चुनौती देने से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को कई नुकसान हो सकते हैं। सबसे पहले, अमेरिका अपनी मुद्रा छापकर विदेशी कर्ज चुकाने की सुविधा खो देगा। दूसरे, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में डॉलर की मांग घटने से इसकी कीमत गिर सकती है। दीर्घकालिक परिणाम: BRICS का विस्तार और डी-डॉलरीकरण के प्रयासों से अमेरिका और अधिक बहुध्रुवीय दुनिया के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ हैं। इससे अमेरिकी आर्थिक प्रभुत्व में कमी आ सकती है और वैश्विक शक्ति संतुलन में परिवर्तन हो सकता है।वैश्विक अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव
नई आर्थिक व्यवस्था: यह एक महत्वपूर्ण कदम है बहुध्रुवीय वैश्विक अर्थव्यवस्था की दिशा में, जो अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को कम करके विकासशील देशों के लिए अधिक संतुलित व्यापारिक वातावरण बनाता है। विकासशील देशों के लिए अवसर: – *वित्तीय स्वतंत्रता*: पश्चिमी वित्तीय संस्थानों पर निर्भरता कम – *व्यापारिक लाभ*: अपनी मुद्रा में व्यापार करने की सुविधा – *आर्थिक स्थिरता*: डॉलर की अस्थिरता से बचावचुनौतियां और बाधाएं
आंतरिक मतभेद: हालांकि BRICS देश मिलकर वैश्विक GDP का 27% हिस्सा बनाते हैं, लेकिन केवल आर्थिक शक्ति से अमेरिकी डॉलर का प्रभुत्व नहीं टूटता। वित्तीय पारदर्शिता, मूल्य स्थिरता और बाजार विकास जैसे अन्य महत्वपूर्ण घटक भी जरूरी हैं। तकनीकी चुनौतियां: – *मुद्रा स्थिरता*: नई मुद्रा की विश्वसनीयता स्थापित करना – *बुनियादी ढांचा*: नई भुगतान प्रणाली का निर्माण – *अंतर्राष्ट्रीय स्वीकार्यता*: अन्य देशों द्वारा अपनाया जानाभारत की भूमिका और रणनीति
भारत इस बदलाव में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। 2024 में, केंद्रीय बैंकों ने सामूहिक रूप से वैश्विक स्वर्ण भंडार में 1,045 मीट्रिक टन जोड़ा, जो डी-डॉलरीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। भारत के लाभ: – *ऊर्जा व्यापार*: रूस और ईरान के साथ रुपए में तेल खरीदना – *द्विपक्षीय व्यापार*: अन्य BRICS देशों के साथ स्थानीय मुद्रा में व्यापार – *वित्तीय स्वतंत्रता*: अमेरिकी प्रतिबंधों से बचावभविष्य की संभावनाएं
2025 और उसके बाद: आने वाले वर्षों में BRICS का विस्तार जारी रहेगा। नए सदस्य देश शामिल होने से इस गठबंधन की आर्थिक ताकत और बढ़ेगी। यह प्रक्रिया धीमी हो सकती है, लेकिन इसकी दिशा स्पष्ट है। तकनीकी नवाचार: – *डिजिटल मुद्रा*: ब्लॉकचेन आधारित BRICS मुद्रा – *AI और फिनटेक*: वित्तीय सेवाओं में नवाचार – *हरित वित्त*: पर्यावरण अनुकूल निवेशनिष्कर्ष: बदलती दुनिया में नए अवसर
BRICS की डी-डॉलरीकरण की पहल केवल एक आर्थिक रणनीति नहीं है, बल्कि एक नई विश्व व्यवस्था की नींव है। यह प्रक्रिया रातों-रात नहीं होगी, लेकिन इसके परिणाम दूरगामी और क्रांतिकारी होंगे। अमेरिकी अर्थव्यवस्था को इस चुनौती से निपटने के लिए अपनी नीतियों में बदलाव करना होगा। वहीं विकासशील देशों के लिए यह एक स्वर्णिम अवसर है अपनी आर्थिक स्वतंत्रता हासिल करने का। आने वाले दशक में यह देखना दिलचस्प होगा कि कैसे यह आर्थिक शतरंज का खेल खेला जाता है और कौन सी शक्ति अंततः विजयी होती है। एक बात तय है – दुनिया बदल रही है, और यह बदलाव अपरिवर्तनीय है। — विवेक मिश्रा एक आर्थिक विश्लेषक और अंतर्राष्ट्रीय वित्त के विशेषज्ञ हैं। वे नियमित रूप से वैश्विक आर्थिक मुद्दों पर लिखते हैं।Join our Whatsapp Channel for Latest Update