अमेरिका का Intel में निवेश: क्या यह चीन मॉडल की नकल है?

अमेरिका का Intel में निवेश आज वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में एक बड़ी बहस का विषय बन गया है। ट्रंप प्रशासन ने Intel कंपनी में 10% तक सरकारी हिस्सेदारी लेने पर विचार शुरू कर दिया है। यह वही अमेरिका है जो हमेशा मुक्त बाजार और पूंजीवाद का पक्षधर रहा है, लेकिन अब यह कदम state capitalism की ओर इशारा करता है।
क्या चीन मॉडल की नकल कर रहा है अमेरिका?
अमेरिका का Intel में निवेश दरअसल उस नीति की तरफ झुकाव है जिसे चीन सालों से अपनाता रहा है। चीन ने 2014 से लेकर अब तक अपनी सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री के लिए $150 बिलियन से अधिक की सब्सिडी दी है और मई 2024 में ही $47.5 बिलियन का नया फंड घोषित किया था। अब अमेरिका भी उसी मॉडल की ओर बढ़ता दिख रहा है जिसकी वह आलोचना करता रहा है।
यह कदम चीन के लिए चुनौती साबित हो सकता है। अमेरिकी export controls पहले ही चीन के सेमीकंडक्टर उत्पादन को 17% तक घटा चुके हैं। ऐसे में यदि अमेरिका अपने Intel को सरकारी समर्थन देगा तो चीन को और तेजी से घरेलू उद्योग मजबूत करना पड़ेगा।
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वैश्विक अर्थव्यवस्था और अमेरिका पर असर
अमेरिका का Intel में निवेश वैश्विक बाजार को हिला सकता है। सबसे पहले यह free market सिद्धांतों को चुनौती देता है। यह साफ दिखाता है कि अब strategic industries में सरकारें सीधा हस्तक्षेप करेंगी। इसके अलावा, अमेरिका-चीन टेक्नोलॉजी वॉर और तेज होगी। भारत, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों पर भी दबाव होगा कि वे अपने critical sectors में सरकारी दखल बढ़ाएं।
सकारात्मक असर की बात करें तो Intel के Ohio में $20 billion का सेमीकंडक्टर प्लांट इस निवेश से मजबूत हो सकता है। China dependency कम होगी और राष्ट्रीय सुरक्षा भी बेहतर हो सकती है। वहीं नकारात्मक पहलू में free market की छवि खराब होगी और taxpayers के पैसे पर जोखिम बढ़ेगा।
पेंटागन पहले ही MP Materials में $400 million का निवेश और U.S. Steel में “golden share” ले चुका है। यह पैटर्न साफ दिखाता है कि अमेरिका critical industries में state control की दिशा में systematic approach अपना रहा है।
निष्कर्ष यह है कि अमेरिका का Intel में निवेश पारंपरिक पूंजीवाद के खिलाफ जाता है लेकिन वैश्विक प्रतिस्पर्धा और चीन की चुनौती ने इसे मजबूरी बना दिया है। अब देखना होगा कि यह प्रयोग सफल होता है या taxpayers के लिए एक महंगी भूल साबित होता है। Cold War 2.0 में अब अर्थशास्त्र और राजनीति का फर्क खत्म होता दिख रहा है।