जस्टिस सूर्य कांत मुख्य न्यायाधीश बने: संविधानिक फैसलों से लेकर न्यायिक सुधारों तक उनका योगदान
जस्टिस सूर्य कांत मुख्य न्यायाधीश: नई जिम्मेदारी और संवैधानिक दृष्टि
जस्टिस सूर्य कांत मुख्य न्यायाधीश के रूप में सोमवार सुबह शपथ लेकर भारत के 53वें CJI बन गए। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु द्वारा दिलाई गई यह शपथ न केवल उनके न्यायिक जीवन की नई शुरुआत है, बल्कि भारतीय न्यायपालिका के लिए भी एक महत्वपूर्ण क्षण है। जस्टिस सूर्य कांत मुख्य न्यायाधीश बनने से पहले सुप्रीम कोर्ट में कई महत्वपूर्ण संवैधानिक मामलों में अपनी निर्णायक भूमिका निभा चुके हैं। शपथ ग्रहण समारोह में उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और कई वरिष्ठ मंत्री उपस्थित रहे, जो उनकी प्रतिष्ठा और न्यायिक योगदान को दर्शाता है।
हरियाणा के हिसार जिले के पेतवार गांव में 1962 में जन्मे जस्टिस सूर्य कांत मुख्य न्यायाधीश बनने तक का सफर मेहनत और निरंतर सीखने का उदाहरण माना जाता है। गांव के साधारण स्कूल से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने 1984 में महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक से कानून की डिग्री प्राप्त की। उसी वर्ष उन्होंने हिसार जिला अदालत से वकालत शुरू की और बाद में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में अपनी पहचान एक सक्षम अधिवक्ता के रूप में स्थापित की। संविधान, सेवा और सिविल मामलों में उनकी विशेषज्ञता ने उन्हें जल्द ही एक स्थापित वकील बना दिया।
वर्ष 2000 में मात्र 38 वर्ष की आयु में वे हरियाणा के सबसे युवा एडवोकेट जनरल बने। 2004 में उन्हें पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। अक्टूबर 2018 में वे हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने और मई 2019 में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत हुए। इन छह वर्षों में जस्टिस सूर्य कांत मुख्य न्यायाधीश के रूप में अधिक से अधिक 300 से भी अधिक फैसले लिख चुके हैं, जिनमें कई बड़े संवैधानिक मुद्दे शामिल रहे।
महत्वपूर्ण मामलों में भूमिका
जस्टिस सूर्य कांत मुख्य न्यायाधीश बनने से पहले जिन प्रमुख मामलों से जुड़े रहे उनमें अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला, बिहार की मतदाता सूची पुनरीक्षण, और पेगासस मामले से जुड़े मुद्दे शामिल हैं। वे उस संविधान पीठ का हिस्सा थे जिसने अनुच्छेद 370 हटाने को संवैधानिक करार दिया। इसके अतिरिक्त वे उस पीठ में भी थे जिसने नागरिकता अधिनियम की धारा 6A पर निर्णय दिया और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत प्रदान की, जबकि गिरफ्तारी की वैधता को बनाए रखा।
न्यायिक सुधारों की प्राथमिकताएँ
CJI के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता सुप्रीम कोर्ट में लंबित लगभग 90,000 मामलों को कम करना है। वे न्यायिक संसाधनों के बेहतर उपयोग, तकनीकी सुधार और केस मैनेजमेंट को सुदृढ़ करने पर जोर दे रहे हैं। उनका मानना है कि न्याय में मानवीय दृष्टिकोण सबसे महत्वपूर्ण है। खेतीबाड़ी के अनुभवों और ‘कवि जैसी संवेदनशीलता’ को वे अपने न्यायिक स्वभाव का आधार बताते हैं। उनके अनुसार, न्याय एक फसल की तरह है जिसे धैर्य, मेहनत और समय से ही समृद्ध बनाया जा सकता है।
जस्टिस सूर्य कांत मुख्य न्यायाधीश के रूप में मध्यस्थता को भी न्यायिक सुधारों का प्रमुख आधार मानते हैं। उनका मानना है कि मध्यस्थता न्यायालयों पर दबाव को कम कर सकती है और विवादों का तेज समाधान दे सकती है।

