भारत की GDP वृद्धि 2024-25: विश्व बैंक का 7% अनुमान

पिछले वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत ने 8.2% की जबरदस्त ग्रोथ दर्ज की थी, जो कि हमारी नीतिगत स्थिरता, निवेश प्रवाह और घरेलू मांग के मिश्रण का नतीजा था। घरेलू मांग बेहतर होने से उपभोग बढ़ा, निवेश के कारण नई परियोजनाएं और कारखाने खुले, और सेवा क्षेत्र—खासकर आईटी व बैंकिंग—ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धात्मक प्रदर्शन दिया। सड़क, रेल, हवाई और शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर में चल रहे प्रोजेक्ट्स ने भी लॉजिस्टिक्स लागत घटाकर उत्पादन और व्यापार को बढ़ावा दिया।
भारत GDP वृद्धि 2024-25: कारण और स्थिरता
विश्व बैंक ने रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि आंतरिक मजबूती और बाहरी जोखिमों के प्रबंधन के कारण भारत 2024 से 2026 तक औसतन 6.7% की दर से बढ़ेगा, जिससे दक्षिण एशिया दुनिया का सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला क्षेत्र बन जाएगा। आंतरिक कारणों में विविधीकृत आर्थिक संरचना, युवा जनसांख्यिकी, डिजिटल अपनाने की तेज़ी और नीतिगत सुधार शामिल हैं। बाहरी कारणों में आपूर्ति श्रृंखला के सुधरे हुए लिंक और ऊर्जा सुरक्षा के लिए नवीकरणीय ऊर्जा निवेश का उल्लेख है। ये तत्त्व मिलकर भारत को वैश्विक अस्थिरता के समय भी तुलनात्मक लाभ दे रहे हैं।
व्यापारिक अवसरों की दृष्टि से रिपोर्ट ने 2030 तक 1 ट्रिलियन डॉलर के मर्चेंडाइज निर्यात लक्ष्य का लक्ष्य-रेखा प्रस्तुत की है। इसे हासिल करने के लिए निर्यात टोकरी का विविधीकरण, ग्लोबल वैल्यू चेन में बेहतर एकीकरण और उत्पादन में तकनीकी उन्नयन आवश्यक होंगे। इन नीतियों के सफल कार्यान्वयन से रोजगार सृजन में वृद्धि और उच्च-गुणवत्ता वाले एक्सपोर्ट्स का संयोजन संभव होगा।
आंतरिक सुधार और सामाजिक प्रभाव
भारत ने 2006 से 2016 के बीच करीब 27.1 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाया—यह बहुआयामी गरीबी संकेतकों में महत्वपूर्ण सुधार का प्रमाण है। संपत्ति में वृद्धि, ईंधन और स्वच्छता सुविधाओं की उपलब्धता तथा पोषण में सुधार जैसे सामाजिक संकेतक बेहतर हुए हैं। फिर भी चुनौतियाँ बनी हैं: बड़ी जनसंख्या का एक हिस्सा अभी भी गरीबी में है और व्यापक कल्याण नीतियों के विस्तार तथा पर्याप्त रोजगार सृजन की आवश्यकता बरकरार है।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भी 2024-25 के लिए भारत का GDP वृद्धि अनुमान 7% किया है, जो विश्व बैंक के आँकड़ों के अनुरूप है और इन दोनों संस्थाओं की सहमति से वैश्विक निवेशकों का भरोसा बढ़ता है। यह संकेत देता है कि नीतिगत दृष्टि और आर्थिक संकेतक दोनों मिलकर समेकित सुधार की दिशा में संकेत दे रहे हैं।
व्यापारिक रणनीति और चुनौतियाँ
निर्यात लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आवश्यक रणनीतियों में उत्पादों की उच्च-मूल्य संवर्धन दर को बढ़ाना, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में अधिक हिस्सेदारी लेना और तकनीकी उन्नयन के साथ छोटे व मध्यम उद्योगों (MSMEs) को सशक्त करना शामिल है। साथ ही, रोजगार सृजन की चुनौतियों से निपटने के लिए कौशल प्रशिक्षण और निवेश-प्रोत्साहन योजनाओं का विस्तार जरूरी होगा।
संक्षेप में, विश्व बैंक की रिपोर्ट यह दर्शाती है कि भारत की अर्थव्यवस्था ने वैश्विक डिस्टर्बेंस के बावजूद एक प्रतिस्पर्धी व स्थिर पाथ अपनाया है, और यदि निर्यात विविधीकरण, अवसंरचना विकास और मानव पूंजी में निवेश जारी रहा तो भारत आने वाले वर्षों में वैश्विक विकास का एक प्रमुख इंजन बन सकता है।
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