धुरंधर रिव्यू: कराची के पाकिस्तानी दर्शक को रहमान डकैत की ‘ग्लोरिफिकेशन’ से आपत्ति, ₹872 करोड़ कमाने वाली फिल्म पर खास टिप्पणी
धुरंधर रिव्यू में कराची के एक पाकिस्तानी दर्शक ने फिल्म की जमकर तारीफ करते हुए भी रहमान डकैत की कथित ‘ग्लोरिफिकेशन’ पर गंभीर आपत्ति जताई। यह धुरंधर रिव्यू उस शख्स का है जो मूल रूप से कराची के लियारी टाउन से जुड़ा है और जिसके लिए फिल्म की लोकेशन तथा किरदार काफी हद तक निजी यादों से जुड़े हुए हैं। बॉलीवुड फिल्म ‘धुरंधर’ कराची के लियारी टाउन की गैंगों की पृष्ठभूमि पर आधारित एक स्पाई-एक्शन थ्रिलर है, जिसमें फिक्शन और रियल लाइफ किरदारों का दिलचस्प मेल दिखाया गया है।
धुरंधर रिव्यू: कराची के दर्शक की नजर से फिल्म
यह पाकिस्तानी सोशल मीडिया यूज़र, जो खुद को कराची निवासी बताता है, ने धुरंधर रिव्यू Reddit पर शेयर किया और साफ लिखा कि सबसे पहले तो उसे यह फिल्म काफी पसंद आई। उसके मुताबिक, फिल्म की सिनेमैटोग्राफी बेहतरीन है, निर्देशन गजब का है और पूरी फिल्म विज़ुअली आकर्षक तथा एंगेजिंग अनुभव देती है। दर्शक ने स्वीकार किया कि एक एंटरटेनिंग स्पाई-क्राइम ड्रामा के तौर पर यह फिल्म शुरू से अंत तक उसे बांधे रखती है।
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रहमान डकैत की ‘ग्लोरिफिकेशन’ पर आपत्ति
हालांकि, इसी धुरंधर रिव्यू में उसने सबसे बड़ा मुद्दा रहमान डकैत की छवि से जोड़ते हुए उठाया। उसके अनुसार, फिल्म में अक्षय खन्ना द्वारा निभाया गया रहमान डकैत का किरदार किसी हद तक ग्लोरिफाई होता दिखता है, जो एक कराचीवासी के रूप में उसे परेशान कर गया। वह मानता है कि कहानी काल्पनिक है, फिर भी जिसने बचपन से इस बदनाम गैंगस्टर की खौफनाक कहानियां सुनी हों, उसके लिए उसे एक तरह के हीरो या रोमांटिक क्रिमिनल की तरह देख पाना आसान नहीं होता।
दर्शक ने अपने धुरंधर रिव्यू में यह भी लिखा कि अगर फिल्म में नाम बदला जाता, तो शायद यह असहजता कम होती। उसने उदाहरण देते हुए लिखा कि सोचा जाए, कोई फिल्ममेकर दाऊद इब्राहिम पर आधारित किरदार को उसके असली नाम के साथ दिखाए और फिर उसे ग्लोरिफाई कर दे, तो दर्शकों की भावना पर इसका क्या असर पड़ेगा। इस तुलना के ज़रिए वह समझाने की कोशिश करता है कि वास्तविक अपराधियों के नाम और उनकी हिंसक विरासत जुड़े रहने पर दर्शकों के लिए फिक्शन और हकीकत के बीच की रेखा धुंधली हो जाती है।
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कराची पुलिस, गैंगवार और मिसिंग डिटेल
अपने धुरंधर रिव्यू में इस पाकिस्तानी यूज़र ने फिल्म की तारीफ के साथ-साथ कुछ तथ्यात्मक कमी की ओर भी इशारा किया। उसने बताया कि एक अहम डिटेल यह है कि कराची के मशहूर पुलिस अधिकारी चौधरी असलम असली जिंदगी में खतरनाक एनकाउंटर के दौरान भी बुलेटप्रूफ जैकेट न पहनने के लिए जाने जाते थे, जबकि फिल्म में यह पहलू नजरअंदाज कर दिया गया। असलम चौधरी, रहमान डकैत और उज़ैर बलोच जैसे नाम कराची की गैंगवार और पुलिस ऑपरेशंस के इतिहास में बेहद चर्चित रहे हैं, इसलिए लोकल दर्शक इन डिटेल्स को लेकर अधिक संवेदनशील रहते हैं। फिर भी, धुरंधर रिव्यू में यह दर्शक स्पष्ट करता है कि फिल्म समग्र रूप से उसे अच्छी लगी और उसने इसे एक ‘गुड मूवी’ बताया। उसके मुताबिक, अगर किरदारों के नाम या कुछ बारीकियों को थोड़ा बदला जाता, तो शायद यह कहानी उसके लिए कम विवादास्पद महसूस होती। इसके बावजूद, वह निर्देशन, स्क्रीनप्ले और विज़ुअल स्केल के लिए धुरंधर को मजबूत सिनेमाई अनुभव मानता है।
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कहानी के स्तर पर धुरंधर में रणवीर सिंह एक भारतीय ऑपरेटिव की भूमिका निभाते हैं, जो पाकिस्तान में रहकर रहमान डकैत के गैंग में घुसपैठ करता है और अंदर से पूरा नेटवर्क समझने की कोशिश करता है। अक्षय खन्ना फिल्म में रहमान डकैत के रूप में नजर आते हैं, जबकि दानिश पंडोर उज़ैर बलोच और संजय दत्त कराची एसपी असलम चौधरी का किरदार निभाते हैं। फिल्म की खासियत यह है कि यह फिक्शनल मिशन को ऐसे वास्तविक नामों और लोकेशंस के साथ जोड़ती है, जिससे कहानी ज़्यादा ऑथेंटिक और खतरनाक दुनिया के करीब महसूस होती है। धुरंधर रिव्यू के साथ दर्शक यह भी मानता है कि वास्तविक अपराधियों और गैंगस्टर्स पर आधारित फिल्मों में संतुलन बनाना बेहद जरूरी है। एक ओर फिल्ममेकर यथार्थवादी टच देना चाहते हैं, वहीं दूसरी ओर पीड़ित समुदायों और शहर की सामूहिक स्मृति का ख्याल रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। इसी संतुलन की तलाश में कभी-कभी ‘ग्लोरिफिकेशन’ और ‘क्रिटिकल पोर्ट्रेयल’ के बीच महीन रेखा पर बहस छिड़ जाती है, जैसा इस धुरंधर रिव्यू के मामले में हुआ।
बॉक्स ऑफिस की बात करें तो धुरंधर ने दुनिया भर में ₹872 करोड़ से ज्यादा की कमाई करके 2025 की सबसे बड़ी फिल्मों में जगह बना ली है और रणवीर सिंह के करियर की अब तक की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई है। जोरदार कलेक्शन, बड़े पैमाने की एक्शन सीक्वेंस और स्टारकास्ट के कारण यह फिल्म लगातार सुर्खियों में बनी हुई है, वहीं कराची के स्थानीय दर्शकों जैसे इस पाकिस्तानी रिव्यूअर के नजरिए ने उसे एक अलग, अधिक संवेदनशील संदर्भ भी दे दिया है।

