विश्व व्यवस्था 2025: SCO, BRICS और QUAD की बढ़ती भूमिका

विश्व व्यवस्था 2025: गुटनिरपेक्षता से बहुध्रुवीय दुनिया

विश्व व्यवस्था हमेशा से परिवर्तनशील रही है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से लेकर आज तक अंतर्राष्ट्रीय राजनीति ने कई बड़े बदलाव देखे हैं। शीत युद्ध का दौर, गुटनिरपेक्ष आंदोलन का उदय, अमेरिका का एकध्रुवीय वर्चस्व और अब बहुध्रुवीय दुनिया — यह पूरी यात्रा वैश्विक शक्ति संतुलन की कहानी बयां करती है।

गुटनिरपेक्ष आंदोलन: तीसरी दुनिया की आवाज

1955 के बांडुंग सम्मेलन से गुटनिरपेक्ष आंदोलन की शुरुआत हुई। भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, मिस्र के नेता गमाल अब्दुल नासिर और यूगोस्लाविया के जोसिप ब्रोज़ टीटो इस आंदोलन के प्रमुख चेहरों में शामिल थे। इसने शीत युद्ध के दौर में तीसरी दुनिया के देशों को स्वतंत्र नीति अपनाने का अवसर दिया। गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सिद्धांतों में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, निरस्त्रीकरण और अहस्तक्षेप शामिल थे। हालांकि, संसाधनों की कमी और आंतरिक मतभेदों के कारण यह आंदोलन सीमित प्रभाव ही डाल सका।

शीत युद्ध और अमेरिकी एकध्रुवीय विश्व

1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी वर्चस्व वाला एकध्रुवीय विश्व सामने आया। इस दौरान वैश्वीकरण, मुक्त व्यापार, उदारीकरण और NATO का विस्तार तेज़ी से हुआ। अमेरिका ने मानवाधिकार और लोकतंत्र के नाम पर कई बार हस्तक्षेप भी किया। लेकिन 9/11 आतंकी हमले, आतंकवाद का बढ़ता खतरा, 2008 का वैश्विक आर्थिक संकट और चीन का तेज़ी से उभरना अमेरिकी प्रभुत्व के लिए चुनौतियां लेकर आया।

बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का उदय

आज की विश्व व्यवस्था में कई शक्ति केंद्र मौजूद हैं। अमेरिका, चीन, रूस, यूरोपीय संघ और भारत मिलकर बहुध्रुवीय दुनिया का निर्माण कर रहे हैं। इस दौर में भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा, तकनीकी प्रभुत्व, ऊर्जा सुरक्षा और अंतरिक्ष की दौड़ जैसे मुद्दे प्रमुख हो गए हैं। इससे यह साफ है कि भविष्य का वैश्विक संतुलन अब किसी एक देश पर निर्भर नहीं रहेगा।

SCO, BRICS और QUAD की भूमिका

2001 में गठित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) ने सुरक्षा, ऊर्जा और आर्थिक सहयोग को प्राथमिकता दी। भारत की सदस्यता ने इसे और मजबूत किया। 2009 में बना BRICS (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) पश्चिमी वर्चस्व के विकल्प के रूप में उभरा और नई आर्थिक संरचना को दिशा दी। वहीं, 2017 के बाद से QUAD ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के प्रभाव को संतुलित करने पर ध्यान दिया। ये सभी संगठन बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के महत्वपूर्ण स्तंभ बन चुके हैं।

भारत की रणनीति और चुनौतियां

भारत के लिए यह समय अवसर और चुनौतियों से भरा है। अपनी भू-रणनीतिक स्थिति, तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और लोकतांत्रिक मूल्यों के कारण भारत वैश्विक राजनीति में अहम भूमिका निभा सकता है। भारत ने गुटनिरपेक्षता की पारंपरिक नीति को ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ के रूप में बदलते हुए अमेरिका, रूस, यूरोपीय संघ और एशियाई देशों के साथ संतुलन की नीति अपनाई है।

भारत के सामने गरीबी, असमानता, अवसंरचना की कमी और चीन-पाकिस्तान से तनाव जैसी गंभीर चुनौतियां भी हैं। लेकिन डिजिटल क्रांति, स्टार्टअप इकोनॉमी, अंतरिक्ष तकनीक और युवा जनसंख्या भारत की सबसे बड़ी ताकतें हैं। यदि भारत इन ताकतों का सही उपयोग करता है तो नई बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में निर्णायक शक्ति बन सकता है।

भविष्य की संभावनाएं

आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन, तकनीकी क्रांति और आर्थिक असमानता जैसे वैश्विक मुद्दे विश्व राजनीति को दिशा देंगे। बहुध्रुवीय विश्व सहयोग और प्रतिस्पर्धा दोनों का मिश्रण होगा। भारत के लिए जरूरी है कि वह रणनीतिक संतुलन बनाए रखे और बहुपक्षीय संगठनों में सक्रिय भूमिका निभाए। ऐसा करने पर भारत न केवल अपनी स्थिति मजबूत करेगा, बल्कि भविष्य की विश्व व्यवस्था में एक केंद्रीय स्तंभ बन सकता है।

👉 संदर्भ: United Nations – Global Issues

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