थाईलैंड-कंबोडिया सीमा विवाद: 2025 में तनाव और सांस्कृतिक समानताएं

SEO Title: थाईलैंड-कंबोडिया सीमा विवाद: इतिहास, तनाव और समाधान
Meta Description: 2025 में थाईलैंड-कंबोडिया सीमा विवाद ने नया मोड़ लिया। जानें 817 किमी सीमा पर तनाव, ऐतिहासिक कारण और सांस्कृतिक समानताओं के बारे में।
दक्षिण-पूर्व एशिया के दो पड़ोसी देश थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सदियों से चले आ रहे विवाद की कहानी राजनीतिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक तत्वों से भरी हुई है। 817 किलोमीटर लंबी सीमा पर स्थित ये दोनों देश न केवल भौगोलिक रूप से बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी गहरे रूप से जुड़े हुए हैं, फिर भी उनके बीच निरंतर तनाव बना रहता है।
2025 में सीमा विवाद का नया संकट
2025 में थाईलैंड-कंबोडिया सीमा विवाद ने एक नया मोड़ लिया है। 28 मई, 2025 को मोम बेई (एमराल्ड ट्राएंगल) के पास कंबोडियाई और थाई सेनाओं के बीच गोलीबारी हुई, जिसमें एक कंबोडियाई सैनिक की मृत्यु हो गई। इस घटना के बाद से दोनों देशों के बीच सैन्य और राजनयिक गतिरोध की स्थिति बनी हुई है।
जुलाई 2025 तक थाईलैंड के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, झड़पों में 12 लोग मारे गए हैं, जिसमें 11 नागरिक और एक थाई सैनिक शामिल है। 31 लोग घायल हुए हैं। 23 जुलाई, 2025 को थाईलैंड ने सीमा तनाव के कारण कंबोडिया से अपने राजदूत को वापस बुला लिया।
इस संघर्ष का आर्थिक प्रभाव भी महत्वपूर्ण है। 2024 में दोनों देशों के बीच सीमा व्यापार 5 बिलियन डॉलर से अधिक था, जिसमें थाईलैंड का 3 बिलियन डॉलर का अतिरिक्त व्यापार था। यह विवाद दोनों देशों की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और सांस्कृतिक समानताएं
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा विवाद का इतिहास औपनिवेशिक काल से जुड़ा है। 1907 में फ्रांस द्वारा पहली बार इस सीमा का मानचित्रण किया गया था। हालांकि, 2000 में दोनों देशों ने एक संयुक्त सीमा आयोग (Joint Border Commission) की स्थापना की, फिर भी कई क्षेत्रों में सीमा का सीमांकन स्पष्ट नहीं है।
सबसे प्रमुख विवाद प्रेह विहार मंदिर (थाईलैंड में खाओ फ्रा विहान के नाम से जाना जाता है) को लेकर है। 2008 में तनाव तब बढ़ा जब कंबोडिया ने इस मंदिर को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल कराने की कोशिश की। यह 11वीं शताब्दी का मंदिर दांग्रेक पर्वत श्रृंखला में स्थित है और दोनों देश इस पर अपना दावा करते हैं। 2008-2013 के बीच इस मंदिर को लेकर गंभीर संघर्ष हुआ था, जिसमें कई सैनिकों और नागरिकों की जान गई थी।
दोनों देशों में बौद्ध धर्म प्रमुख धर्म है, जहां 80-95% आबादी बौद्ध है। दोनों देशों में थेरवाद बौद्ध धर्म का प्रचलन है, और कंबोडियाई बौद्ध धर्म के थाईलैंड, लाओस, म्यांमार और श्रीलंका के बौद्ध धर्म से गहरे संबंध हैं। हिंदू धर्म ने भी दोनों देशों को वास्तुकला और भाषा के रूप में प्रभावित किया है। 13वीं शताब्दी में कंबोडियाई लोगों ने बड़े पैमाने पर थेरवाद बौद्ध धर्म अपनाया, लेकिन हिंदू प्रभाव आज भी दिखाई देता है।
दोनों देशों की भाषाओं में संस्कृत और पालि के शब्द हैं, जो भारतीय सभ्यता के प्रभाव को दर्शाता है। पहली शताब्दी ईस्वी के आसपास भारतीय संस्कृति और सभ्यता, भाषा और कलाओं सहित, मुख्य भूमि दक्षिण-पूर्व एशिया पहुंची। दोनों देश समान सांस्कृतिक गतिविधियां साझा करते हैं, जैसे किकबॉक्सिंग और अप्सरा नृत्य। कंबोडिया में किकबॉक्सिंग को कुन खमेर कहा जाता है, जबकि थाई इसे मुएथाई कहते हैं। दोनों देश “राष्ट्र-धर्म-राजा” के राष्ट्रीय मंत्र को साझा करते हैं, जो उनकी समान राजनीतिक और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है।
खमेर साम्राज्य के दौरान हिंदू-बौद्ध वास्तुकला का प्रभाव दोनों देशों में देखा जा सकता है। अंकोर वाट जैसे स्मारक इस साझा विरासत के प्रमाण हैं।
समाधान की संभावनाएं
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच विवाद एक जटिल मुद्दा है जो राजनीतिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कारकों से प्रभावित है। दोनों देशों की गहरी सांस्कृतिक समानताएं – बौद्ध धर्म, हिंदू प्रभाव, साझा भाषाई तत्व, और कलात्मक परंपराएं – इस बात का प्रमाण हैं कि ये देश प्राकृतिक सहयोगी हैं।
2025 की हालिया घटनाओं ने फिर से दिखाया है कि यह विवाद कितना संवेदनशील है, लेकिन दोनों देशों के आर्थिक हितों और साझा सांस्कृतिक विरासत को देखते हुए, शांतिपूर्ण समाधान की संभावना बनी रहती है। इसके लिए दोनों पक्षों को राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखानी होगी और अपनी साझा विरासत को आगे बढ़ाना होगा।
समय की मांग है कि दोनों देश अपने मतभेदों को भुलाकर अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और आर्थिक सहयोग के आधार पर एक नया अध्याय शुरू करें।
यूनेस्को की प्रेह विहार मंदिर रिपोर्ट