संघ की चुनौतियां: मोहन भागवत की कार्यशैली पर उठे सवाल

संघ की चुनौतियों में मोहन भागवत का नेतृत्व

संघ की चुनौतियां: मोहन भागवत के नेतृत्व पर बढ़ते सवाल

संघ की चुनौतियां वर्तमान समय में नई बहस और विचार का विषय बन गई हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत के नेतृत्व में संगठन के कार्य और प्रभावशीलता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।

विवादित बयानों की छाया में संगठनात्मक प्रभावशीलता के सवाल

मोहन भागवत के कार्यकाल में यह प्रवृत्ति देखी गई है कि वे समय-समय पर ऐसे बयान देते हैं जो विवाद उत्पन्न करते हैं। हाल ही में शिक्षा पाठ्यक्रम को लेकर दिया गया उनका बयान इसकी मिसाल है। इससे यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या यह रणनीति का हिस्सा है या नेतृत्व में स्पष्टता की कमी?

संगठनात्मक सक्रियता में गिरावट

संघ की पारंपरिक सक्रियता में स्पष्ट कमी देखी जा रही है। बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों पर संघ और विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठनों की चुप्पी संघ की चुनौतियां को और गंभीर बनाती है।

अतीत से तुलना

संघ के प्रचारक जमीनी स्तर पर कार्यरत रहते थे

उनका प्रभाव इतना था कि मुख्यमंत्री तक जवाबदेह होते थे

कार्यकर्ताओं को समाज में विशेष सम्मान प्राप्त था

संगठनात्मक संस्कृति में परिवर्तन

संघ में अब पारंपरिक सादगी की जगह आधुनिकता और व्यक्तिगत लाभ की प्रवृत्ति ने जगह ली है:

फाइव स्टार कल्चर का उदय

जनप्रतिनिधियों से व्यक्तिगत लाभ की प्रवृत्ति

शाखाओं में भागीदारी में कमी

शाखाओं की स्थिति और युवाओं की रुचि

संघ की चुनौतियां तब और गहराती हैं जब हम शाखाओं की वर्तमान स्थिति को देखते हैं:

शाखाओं की संख्या में गिरावट

नई शाखाएं धीमी गति से खुल रही हैं

युवाओं में संघ के प्रति उत्साह में कमी

नागपुर केंद्र और कार्यशैली

केशव भवन, नागपुर — संघ का मुख्यालय — आधुनिक सुविधाओं से युक्त हो गया है, लेकिन इसकी कार्यशैली पर सवाल उठते हैं। यह दूरी संगठन की मूल विचारधारा से स्पष्ट रूप से झलकती है।

राजनीतिक प्रभाव और संघ का मेरुदंड

भाजपा का मेरुदंड माने जाने वाले संघ की रणनीति और प्रभावशीलता अब राजनीति पर भी असर डाल रही है। नेतृत्व की अस्पष्टता से पार्टी और अन्य संगठनों की दिशा पर भी प्रभाव पड़ता है।

संघ की चुनौतियां और आगे की राह

संघ के सामने अब ये प्रमुख चुनौतियां हैं:

विवादों से बचकर स्पष्ट रणनीतिक नेतृत्व

जमीनी संपर्क की पुनर्स्थापना

युवाओं को जोड़ने की नई रणनीति

सामाजिक मुद्दों पर स्पष्ट सक्रियता

निष्कर्ष: आत्मचिंतन की आवश्यकता

संघ की चुनौतियां अब केवल व्यक्ति विशेष तक सीमित नहीं हैं, बल्कि संस्थागत रूप से विचार की मांग करती हैं। एक संतुलित रणनीति से ही संघ अपनी खोई साख को पुनः प्राप्त कर सकता है।

लेखक: विवेक मिश्र

Disclaimer: यह लेख लेखक के निजी विचारों पर आधारित है। इसमें व्यक्त किए गए मत, विचार और विश्लेषण लेखक के स्वयं के हैं और यह आवश्यक नहीं कि हमारे संगठन, प्लेटफ़ॉर्म या किसी संस्था की आधिकारिक नीति या विचारों का प्रतिनिधित्व करते हों। पाठकों से निवेदन है कि वे इस सामग्री को केवल सूचना और विमर्श के उद्देश्य से लें।

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