राधिका यादव हत्याकांड: टेनिस स्टार की हत्या ने हरियाणा में लैंगिक सोच की पोल खोली

राधिका यादव हत्या मामला और हरियाणा का लैंगिक भेदभाव
लेखक: विवेक मिश्रा

राधिका यादव हत्याकांड: लैंगिक भेदभाव की बर्बर तस्वीर

एक उभरते सितारे का दुखद अंत

25 वर्षीय राज्य स्तरीय टेनिस खिलाड़ी राधिका यादव की अपने ही पिता द्वारा हत्या ने एक बार फिर हरियाणा समाज में गहरे तक जमी लैंगिक भेदभाव की सोच को उजागर कर दिया है। गुरुग्राम में गुरुवार सुबह करीब 10:30 बजे, दीपक यादव (49) ने अपनी बेटी के टेनिस अकादमी चलाने के निर्णय को लेकर हुई बहस के दौरान अपनी लाइसेंसी बंदूक से गोली मारकर बेटी की हत्या कर दी। इंटरनेशनल टेनिस फेडरेशन द्वारा डबल्स टेनिस प्लेयर के रूप में 113वीं रैंकिंग प्राप्त करने वाली राधिका यादव लगातार तीन गोलियों से मारी गई।

राधिका यादव की उनके पिता द्वारा की गई हत्या से समाज का एक भयानक चेहरा सामने आया है। जहां भारत “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” की बात करता है, वहीं एक पिता अपनी होनहार बेटी को इसलिए मार देता है कि वह परिवार का लालन-पालन कर रही थी। यह घटना हरियाणा में महिलाओं के प्रति मानसिकता की गहरी समस्या को उजागर करती है।

हत्या के पीछे के कारण: पुरुष अहंकार और आर्थिक निर्भरता

सूत्रों के अनुसार, दीपक यादव को अपनी बेटी पर आर्थिक रूप से निर्भर रहने से अपमान महसूस हो रहा था। आरोपी दीपक यादव ने अपनी बेटी की हत्या के पीछे के कारणों के बारे में चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, इस जघन्य अपराध में कई कारक शामिल थे – राधिका यादव की टेनिस अकादमी के संचालन को लेकर विवाद से लेकर उसकी सोशल मीडिया उपस्थिति और आर्थिक निर्भरता को लेकर पिता के घायल पुरुष अहंकार तक।

दीपक, जो कथित तौर पर अपने जीवन यापन के लिए किराए की आय पर निर्भर था, राधिका के अकादमी पर निरंतर ध्यान देने से नाखुश था। दुखद विडंबना यह है कि राधिका यादव न केवल अपना बल्कि अपने पूरे परिवार का भरण-पोषण अपने टेनिस करियर और अकादमी के माध्यम से कर रही थी, फिर भी यह उसके पिता के लिए गर्व के बजाय शर्म का कारण बन गया।

हरियाणा का ऐतिहासिक लैंगिक भेदभाव: भेदभाव की विरासत

लिंग अनुपात का काला अतीत

हरियाणा में कुछ दशकों पहले male-female ratio सबसे गड़बड़ था। राज्य ने ऐतिहासिक रूप से भारत में सबसे खराब लिंग अनुपात के साथ संघर्ष किया है, जो पुरुष बच्चों के लिए गहरी प्राथमिकता को दर्शाता है। 2001 में, हरियाणा का बाल लिंग अनुपात 1000 लड़कों पर 819 लड़कियों का था, जो देश में सबसे कम था। यह केवल एक सांख्यिकीय विसंगति नहीं थी बल्कि बालिकाओं के खिलाफ व्यवस्थित भेदभाव की अभिव्यक्ति थी।

कन्या भ्रूण हत्या और लिंग-चयनात्मक गर्भपात की प्रथा व्यापक थी, जो पितृसत्तात्मक मानसिकता से प्रेरित थी जो बेटियों को आर्थिक बोझ के रूप में देखती थी। परिवार बेटियों के जन्म से बचने के लिए चरम सीमा तक जाते थे, उन्हें संपत्ति के बजाय देनदारियों के रूप में देखते थे। इस मानसिकता ने एक ऐसी संस्कृति का निर्माण किया जहां महिलाओं की उपलब्धियां अक्सर परिवारों पर उनके कथित आर्थिक बोझ की छाया में दब जाती थीं।

सरकारी हस्तक्षेप और धीमा बदलाव

सरकार की योजनाओं और समाजसेवी संगठनों के अथक प्रयासों से यह स्थिति बेहतर तो हुई है, पर बेटी विरोधी सोच आज भी जीवित है। “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” जैसी योजनाओं के बावजूद, पारंपरिक मानसिकता में आमूल-चूल परिवर्तन अभी भी एक लंबी प्रक्रिया है।

हरियाणा सरकार ने विभिन्न नीतियों के माध्यम से लड़कियों की शिक्षा और खेल में भागीदारी को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया है। “लाडली योजना” जैसी पहलों ने बालिकाओं के जन्म को प्रोत्साहित करने का काम किया है, लेकिन सामाजिक मानसिकता में बदलाव की गति धीमी है।

विश्व मंच पर हरियाणा की बेटियों का गौरव

खेल जगत में उत्कृष्टता

जहां हरियाणा की बेटियां विश्व स्तर पर भारत का गौरव बढ़ा रही हैं, वहीं आज भी जहरीली सोच जीवित है। राधिका यादव जैसी खिलाड़ियों की हत्या इस बात का प्रमाण है कि प्रगति के बावजूद, पुरानी मानसिकता अभी भी समाज में गहराई तक जड़ें जमाए हुए है।

हरियाणा की बेटियों ने ओलंपिक, एशियन गेम्स, और कॉमनवेल्थ गेम्स में अनगिनत पदक जीते हैं:

बॉक्सिंग में: मैरी कॉम के अलावा, पूजा रानी, नीतू घांगस, और अन्य महिला मुक्केबाजों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन किया है।
कुश्ती में: साक्षी मलिक, विनेश फोगाट, बबिता फोगाट, और गीता फोगाट जैसी पहलवानों ने विश्व स्तर पर भारत का झंडा फहराया है।
एथलेटिक्स में: हिमा दास, दुती चंद, और स्वप्ना बर्मन जैसी धावकों ने ट्रैक और फील्ड में नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं।
टेनिस में: सानिया मिर्जा, अंकिता रैना, और अब राधिका यादव जैसी खिलाड़ियों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व किया है।

महिला विरोधी मानसिकता को साफ करने के सुझाव

शिक्षा और जागरूकता

पारिवारिक शिक्षा: परिवारों में लैंगिक समानता की शिक्षा देना आवश्यक है।
स्कूली पाठ्यक्रम में बदलाव: बच्चों को छोटी उम्र से ही सिखाना चाहिए कि लड़के और लड़कियां बराबर हैं।
मीडिया की भूमिका: मीडिया को महिलाओं की उपलब्धियों को उजागर करना चाहिए।

आर्थिक सशक्तिकरण

स्वरोजगार को प्रोत्साहन
वित्तीय सहायता

कानूनी सुधार

सख्त कानून
पारिवारिक हिंसा कानून

बालिका संवर्धन के लिए सरकारी नीतियां

मौजूदा योजनाएं

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
लाडली योजना
सुकन्या समृद्धि योजना

सुधार की आवश्यकताएं

खेल में निवेश
मानसिकता परिवर्तन कार्यक्रम
महिला सुरक्षा

निष्कर्ष: बदलाव की दिशा

राधिका यादव की हत्या एक व्यक्तिगत त्रासदी है, लेकिन यह एक बड़ी सामाजिक समस्या की ओर इशारा करती है।
राधिका यादव का सपना था कि वह अपनी टेनिस अकादमी के माध्यम से अन्य लड़कियों को भी इस खेल में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करे।
हरियाणा की मिट्टी ने जो बेटियां दी हैं, वे इस धरती का गौरव हैं, बोझ नहीं।

हरियाणा में महिला शिक्षा की स्थिति और सरकारी प्रयास

डिस्क्लेमर:
इस लेख में व्यक्त किए गए विचार और विश्लेषण लेखक के निजी मत हैं। इनका उद्देश्य सामाजिक मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करना है और ये आवश्यक रूप से digiword.aksshatech.com या इसके संपादकीय विभाग की आधिकारिक राय को प्रतिबिंबित नहीं करते। लेख में प्रस्तुत सामग्री जनहित में सूचना व विमर्श हेतु है, जिसका उद्देश्य किसी व्यक्ति, संस्था या समुदाय की भावना को ठेस पहुँचाना नहीं है।

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