भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था और पड़ोसी देशों की अस्थिरता

भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था और राजनीतिक स्थिरता

भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को लेकर पड़ोसी देशों की राजनीतिक अस्थिरता की घटनाओं ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। दक्षिण एशिया में हाल के वर्षों में सरकारों का पतन, जनआंदोलन और सत्ता संघर्ष आम बात हो गई है। ऐसे हालात में यह आवश्यक है कि भारत की लोकतांत्रिक स्थिति का गहराई से विश्लेषण किया जाए।

पड़ोसी देशों में राजनीतिक बदलाव

श्रीलंका (2022) में आर्थिक संकट इतना गंभीर हुआ कि राष्ट्रपति गोताबाया राजपक्षे को इस्तीफा देना पड़ा। खाद्यान्न और ईंधन की कमी ने जनता को सड़कों पर उतरने को मजबूर कर दिया। बांग्लादेश (2024) में छात्र आंदोलन कोटा प्रणाली के खिलाफ शुरू हुआ और धीरे-धीरे यह सरकार विरोधी आंदोलन का रूप ले बैठा।

नेपाल (2024-2025) में प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन जारी रहे और गठबंधन सरकारें लगातार अस्थिर रहीं। अफगानिस्तान में तालिबान का सत्ता में लौटना, पाकिस्तान में आर्थिक संकट और राजनीतिक अनिश्चितता तथा म्यांमार में सैन्य तख्तापलट ने पूरे क्षेत्र में लोकतंत्र की स्थिति को कमजोर किया है।

भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था का विश्लेषण

भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था की तुलना जब पड़ोसी देशों से की जाती है तो यह कहीं अधिक स्थिर और परिपक्व दिखाई देती है। यहां स्वतंत्र न्यायपालिका, मुक्त प्रेस, संवैधानिक संस्थाएं और नियमित चुनावी प्रक्रिया लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करते हैं। यही कारण है कि भारत में सत्ता हस्तांतरण शांतिपूर्ण ढंग से होता रहा है।

आर्थिक दृष्टि से भी भारत अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में है। श्रीलंका की तरह गहरी आर्थिक मंदी यहां देखने को नहीं मिलती। हालांकि चुनौतियां जरूर मौजूद हैं, लेकिन भारत की मजबूत संस्थाएं उन्हें संभालने में सक्षम रही हैं। लोकतांत्रिक अनुभव के 75 वर्ष इस परिपक्वता की सबसे बड़ी पहचान हैं।

विपक्षी राजनीति भी भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था का अहम हिस्सा है। विपक्षी दल कई वैध चिंताएं सामने लाते हैं, जैसे कि चुनावी सुधार की आवश्यकता, सामाजिक न्याय और आर्थिक असमानता। लेकिन इसके साथ ही विभाजनकारी राजनीति, संस्थानों पर अनुचित हमले और तथ्यहीन आरोप जैसी प्रवृत्तियां लोकतंत्र की मजबूती को चुनौती दे सकती हैं।

चुनौतियां और समाधान

यदि भारत को भविष्य में अपने लोकतंत्र को और मजबूत करना है तो कुछ अहम कदम आवश्यक हैं। सबसे पहले राजनीतिक दलों को संवाद और रचनात्मक बहस की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। इसके अलावा लोकतांत्रिक संस्थाओं का सम्मान करना और उन्हें मजबूत बनाना जरूरी है। आर्थिक सुधारों पर ध्यान देना और सामाजिक सद्भाव बनाए रखना भी समान रूप से महत्वपूर्ण है।

संवैधानिक दायरे में रहकर मतभेदों का समाधान ही भारत के लोकतंत्र की वास्तविक शक्ति है। पड़ोसी देशों की अस्थिरता से सबक लेकर भारत को अपने लोकतांत्रिक ढांचे को और मजबूत बनाना होगा।

निष्कर्षतः, भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य में स्थिर और सशक्त है। यहां जनता लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखती है और यही भारत की सबसे बड़ी ताकत है जो इसे अपने पड़ोसियों से अलग और मजबूत बनाती है।

External Authoritative Link:
👉 The Hindu – Indian Democracy

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