जर्मनी की स्वर्ण वापसी: अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती देता वैश्विक डी-डॉलराइजेशन

जर्मनी की स्वर्ण वापसी और डी-डॉलराइजेशन आंदोलन

जर्मनी की स्वर्ण वापसी और डी-डॉलराइजेशन का बढ़ता प्रभाव

जर्मनी की स्वर्ण वापसी अब वैश्विक डी-डॉलराइजेशन आंदोलन का प्रमुख प्रतीक बनती जा रही है। अमेरिका की धमकीपूर्ण नीतियों और वित्तीय वर्चस्व के चलते, जर्मनी अपने 1,200 टन सोने को अमेरिकी फेडरल रिजर्व से निकालने पर विचार कर रहा है।

यह निर्णय केवल आर्थिक नहीं बल्कि एक रणनीतिक कदम है, जो अमेरिका के आर्थिक नियंत्रण को खुली चुनौती देता है।

ट्रंप की नीतियों से बढ़ा डी-डॉलराइजेशन

फरवरी 2025 में ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद, उन्होंने ब्रिक्स देशों को डॉलर का उपयोग छोड़ने पर गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी। ट्रंप की यह टिप्पणी – “कोई भी ब्रिक्स राज्य डॉलर को खत्म करने की बात करेगा, तो उस पर 150% शुल्क लगेगा” – वैश्विक आक्रोश का कारण बनी।

यही नहीं, यूरोप में भी डी-डॉलराइजेशन की लहर तेज हो गई है। जर्मनी की स्वर्ण वापसी इस प्रक्रिया का हिस्सा है, जहां 1,200 टन सोना न्यूयॉर्क से निकालकर अपने देश में लाने की मांग तेज हो रही है।
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ब्रिक्स और अन्य राष्ट्रों की प्रतिक्रिया

ब्रिक्स देशों ने भी अमेरिकी वित्तीय वर्चस्व को चुनौती देने का संकल्प लिया है। ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा ने कहा, “हम अमेरिकी डॉलर की सत्ता खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”

डी-डॉलराइजेशन केवल ब्रिक्स की बात नहीं, बल्कि अब यूरोपीय राष्ट्र जैसे जर्मनी भी इस दिशा में अग्रसर हैं।

निष्कर्ष: एक बहुध्रुवीय विश्व की ओर
जर्मनी की स्वर्ण वापसी और वैश्विक डी-डॉलराइजेशन केवल आर्थिक घटनाएं नहीं हैं, बल्कि यह अमेरिका के आर्थिक साम्राज्य के अंत की शुरुआत भी है। ब्रिक्स, यूरोप और अन्य राष्ट्र मिलकर एक नई विश्व व्यवस्था की ओर बढ़ रहे हैं — जहां डॉलर का एकाधिकार समाप्त होगा और एक अधिक न्यायसंगत वित्तीय व्यवस्था की स्थापना होगी।

नोट: यह लेख पूरी तरह से तथ्यों और विश्व घटनाओं के विश्लेषण पर आधारित है ।

IMF on Global Reserve Currencies
https://www.imf.org/en/Topics/external-sector/reserve-currencies

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