फूड डिलीवरी पर 18% GST: आम आदमी की जेब पर असर

फूड डिलीवरी पर 18% GST से आम आदमी की जेब पर असर

फूड डिलीवरी पर 18% GST लागू होने के बाद आम आदमी की जेब पर सीधा असर दिखने लगा है। 22 सितंबर से जीएसटी काउंसिल के फैसले के अनुसार अब फूड डिलीवरी और क्विक कॉमर्स सेवाओं पर 18% टैक्स देना होगा। इससे जोमैटो और स्विगी जैसे प्लेटफॉर्म महंगे हो जाएंगे और उपभोक्ताओं का मासिक बजट बिगड़ सकता है।

फूड डिलीवरी पर 18% GST का असर

मॉर्गन स्टेनली की रिपोर्ट बताती है कि जोमैटो पर प्रति ऑर्डर औसतन ₹2 की अतिरिक्त लागत और स्विगी पर इससे भी ज्यादा खर्च आ सकता है। डिलीवरी फीस पर 18% अतिरिक्त टैक्स से उपभोक्ताओं को सुविधा के लिए ज्यादा पैसे देने होंगे।

मेट्रो शहरों में बदलाव

दिल्ली, मुंबई और बैंगलोर जैसे शहरों में कामकाजी लोग और युवा पीढ़ी फूड डिलीवरी पर निर्भर हैं। लेकिन फूड डिलीवरी पर 18% GST से सुविधा की कीमत बढ़ जाएगी। मध्यम वर्गीय परिवारों का मासिक बजट बढ़ेगा और त्योहारी सीजन में अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।

छोटे शहरों में चुनौतियां

इंदौर, नागपुर और लुधियाना जैसे टियर-2 और टियर-3 शहरों में भी फूड डिलीवरी का चलन तेजी से बढ़ा है। लेकिन सीमित आय और रेस्टोरेंट विकल्पों के कारण अतिरिक्त टैक्स वहां की जनता के लिए और बड़ा बोझ बनेगा। इससे स्थानीय व्यापार और रोजगार पर भी असर पड़ सकता है।

आम आदमी और समुदायों पर प्रभाव

औसत परिवार को अब सालाना ₹400-500 का अतिरिक्त खर्च झेलना पड़ेगा। छात्र, बुजुर्ग, दिव्यांग और कामकाजी महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे क्योंकि उनके लिए ऑनलाइन फूड ऑर्डर सुविधा जीवनशैली का हिस्सा है।

समाधान और सुझाव

सरकार छोटे ऑर्डर पर टैक्स में छूट और त्योहारी सीजन में राहत दे सकती है। वहीं उपभोक्ता ग्रुप ऑर्डर या न्यूनतम वैल्यू ऑफर का लाभ उठाकर खर्च कम कर सकते हैं।

निष्कर्ष: फूड डिलीवरी पर 18% GST का यह निर्णय आम आदमी के लिए एक और आर्थिक चुनौती है। सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए ताकि लोगों की जेब और सुविधा दोनों सुरक्षित रह सकें।

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