दुनिया के देश क्यों बढ़ा रहे हैं गोल्ड रिजर्व? छह माह में 65% बढ़ी सोने की कीमत

देश क्यों बढ़ा रहे हैं गोल्ड रिजर्व – वैश्विक स्वर्ण भंडार में वृद्धि

देश क्यों बढ़ा रहे हैं गोल्ड रिजर्व — आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था अनिश्चितताओं से घिरी हुई है। अमेरिका द्वारा रूस की सरकारी तेल कंपनियों पर लगाए गए प्रतिबंधों ने भारत और चीन सहित कई देशों के लिए नई आर्थिक चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। इसके चलते वैश्विक तेल कीमतों में लगभग पांच प्रतिशत तक वृद्धि हुई है। ट्रंप प्रशासन की टैरिफ नीतियों ने पहले से ही अस्थिर भू-राजनीतिक परिदृश्य को और जटिल बना दिया है, जिससे वैश्विक वित्तीय प्रणाली पर दबाव बढ़ा है।

डॉलर पर बढ़ता अविश्वास

रूस-यूक्रेन संघर्ष के बाद रूस के विदेशी मुद्रा भंडार को फ्रीज कर दिया गया। इस कदम ने यह स्पष्ट कर दिया कि अमेरिकी डॉलर अब केवल एक वैश्विक मुद्रा नहीं बल्कि एक रणनीतिक हथियार बन चुका है। इसी कारण देश क्यों बढ़ा रहे हैं गोल्ड रिजर्व का उत्तर आर्थिक सुरक्षा और आत्मनिर्भरता में छिपा है। चीन, भारत और रूस जैसे देश अपनी मौद्रिक स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए स्वर्ण भंडार तेजी से बढ़ा रहे हैं। पिछले छह माह में सोने की कीमतें 65 प्रतिशत से अधिक उछल चुकी हैं, जो इस प्रवृत्ति की पुष्टि करती हैं।

जोखिम से बचने की रणनीति

विकसित अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि दर दो प्रतिशत से नीचे है जबकि मुद्रास्फीति स्थिर बनी हुई है। ऐसी स्थिति में पारंपरिक सुरक्षित निवेश जैसे सावरेन बांड या विदेशी मुद्राएं अब भरोसेमंद विकल्प नहीं रह गए हैं। केंद्रीय बैंक अब ऐसी संपत्तियों की तलाश में हैं जो किसी देश की नीति या प्रतिबंध से प्रभावित न हों। सोना एक ऐसी ठोस परिसंपत्ति है जो न केवल जोखिममुक्त है बल्कि इसे किसी भी समय नकदी में बदला जा सकता है। यही कारण है कि कई राष्ट्र अपने भंडार में सोने की हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं।

डी-डॉलराइजेशन का दौर

देश क्यों बढ़ा रहे हैं गोल्ड रिजर्व का एक बड़ा कारण डी-डॉलराइजेशन भी है। यानी अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता को कम करना। चीन, भारत, तुर्किये, रूस और मध्य पूर्व के कई देश इस दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। गोल्ड रिजर्व बढ़ाने से उन्हें अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से सुरक्षा मिलती है, साथ ही मौद्रिक विश्वसनीयता और आर्थिक स्थिरता में सुधार होता है। यह देशों को स्वतंत्र वित्तीय नीति अपनाने की लचीलापन भी देता है।

केंद्रीय बैंकों की रिकॉर्ड खरीदारी

वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के अनुसार, 2025 में दुनिया भर के केंद्रीय बैंक सामूहिक रूप से लगभग 900 टन सोना खरीद सकते हैं। यह लगातार चौथा वर्ष होगा जब औसत से अधिक स्वर्ण खरीदारी दर्ज की जाएगी। सर्वेक्षणों में 76 प्रतिशत केंद्रीय बैंकों ने संकेत दिया है कि आने वाले वर्षों में उनके भंडार में सोने का अनुपात और बढ़ेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रवृत्ति वैश्विक ब्याज दरों के बावजूद सोने की कीमतों को स्थिर रखने में सहायक होगी। इससे निवेशकों का भरोसा भी बढ़ा है और सोना एक दीर्घकालिक सुरक्षित संपत्ति के रूप में उभर रहा है।

घटता डॉलर का प्रभुत्व

आईएमएफ के कोफर डेटाबेस के अनुसार, अमेरिकी डॉलर अभी भी वैश्विक भंडार का करीब 58 प्रतिशत हिस्सा है, परंतु यह हिस्सा पिछले कुछ वर्षों में लगातार घट रहा है। राजनीतिक तनाव, प्रतिबंधों और आर्थिक अनिश्चितता ने कई देशों को डॉलर पर अत्यधिक निर्भरता को लेकर चिंतित कर दिया है। दूसरी ओर, सोना किसी एक देश की नीतियों से मुक्त होता है। इसे स्थानीय रूप से रखा जा सकता है, वैश्विक स्तर पर बेचा जा सकता है और यह किसी विदेशी हस्तक्षेप से सुरक्षित रहता है।

चीन बना सबसे बड़ा स्वर्ण खरीदार

चीन इस परिवर्तन का सबसे बड़ा उदाहरण है। पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना ने लगातार 18 महीनों तक अपने स्वर्ण भंडार में वृद्धि की है। विश्लेषक मानते हैं कि यह कदम न केवल संभावित अमेरिकी प्रतिबंधों से सुरक्षा प्रदान करता है बल्कि ब्रिक्स+ देशों के बीच गैर-डॉलर व्यापार को भी मजबूती देता है। चीन की यह नीति वैश्विक स्वर्ण बाजार पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकती है। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था द्वारा लगातार स्वर्ण खरीदारी से कीमतें ऊंची बनी रह सकती हैं।

भविष्य की आर्थिक दिशा

अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यह प्रवृत्ति वैश्विक वित्तीय ढांचे को बहुध्रुवीय बना रही है। जहां पहले डॉलर एकमात्र प्रभुत्वशाली मुद्रा थी, अब सोना उसकी चुनौती बनता जा रहा है। देश क्यों बढ़ा रहे हैं गोल्ड रिजर्व इसका जवाब केवल आर्थिक सुरक्षा नहीं बल्कि राजनीतिक स्वतंत्रता की चाह से भी जुड़ा है। आने वाले वर्षों में स्वर्ण भंडार में वृद्धि न केवल निवेश सुरक्षा को मजबूत करेगी बल्कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार संतुलन को भी नया रूप दे सकती है।

बाहरी लिंक: World Gold Council

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