कांग्रेस नेतृत्व संकट और बिहार नोटिस विवाद का विस्तृत विश्लेषण
कांग्रेस नेतृत्व संकट अब बिहार विधानसभा चुनाव के बाद एक बार फिर चर्चा में है, जहां कांग्रेस ने कथित पार्टी-विरोधी गतिविधियों के आरोप में पूर्व मंत्रियों सहित 43 नेताओं को नोटिस जारी किया है। इन नेताओं से 21 नवंबर दोपहर तक स्पष्टीकरण मांगा गया है, अन्यथा उन्हें छह वर्षों के लिए पार्टी से निकाला जा सकता है।
कांग्रेस नेतृत्व संकट पर बार-बार दोहराई जाने वाली प्रतिक्रियाएं
चुनाव हारते ही कांग्रेस की प्रतिक्रिया अब एक तय पैटर्न में बदल चुकी है—पहले EVM पर सवाल, फिर वोट चोरी का आरोप, उसके बाद संगठनात्मक कमजोरी की चर्चा और अंत में स्थानीय नेताओं पर ठीकरा फोड़ना। लेकिन असली सवाल कोई नहीं पूछता—पार्टी की बुनियादी समस्या आखिर है क्या?
समस्या की जड़: नेतृत्व पर सवाल
कांग्रेस की गिरती स्थिति का मूल कारण कांग्रेस नेतृत्व संकट है, जो राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़ा करता है। पार्टी के अंदर कोई भी इस विषय पर खुलकर चर्चा करने की हिम्मत नहीं करता।
आंकड़ों को देखें तो समस्या और स्पष्ट हो जाती है:
2014 लोकसभा: 44 सीटें
2019 लोकसभा: 52 सीटें
2024 लोकसभा: फिर से निराशाजनक प्रदर्शन
राज्य चुनावों में लगातार हार
योग्य नेताओं की अनदेखी और आंतरिक कमजोरी
कांग्रेस का पूरा ध्यान राहुल गांधी को प्रासंगिक बनाए रखने में खर्च हो रहा है। इससे योग्य नेताओं की उपेक्षा, चमचागिरी की संस्कृति, असहमति की कमी और प्रतिभा का पलायन बढ़ रहा है। कपिल सिब्बल, गुलाम नबी आजाद, ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद जैसे कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैं।
बिहार में 43 नेताओं को नोटिस देने की कार्रवाई भी सिर्फ लक्षणों का इलाज है, बीमारी का नहीं। अगर इतने नेता एक साथ पार्टी-विरोधी बन जाते हैं, तो समस्या नेताओं में है या नेतृत्व में?
राहुल गांधी ईमानदार और शिक्षित हैं, लेकिन राजनीतिक नेतृत्व के लिए यह पर्याप्त नहीं। राजनीतिक समझ की कमी, जमीनी संपर्क का अभाव, संदेशों में असंगति, गठबंधन प्रबंधन में विफलता और निर्णय लेने में देरी उनके कमजोर पक्ष हैं।
विडंबना यह है कि पार्टी कार्यकर्ता, नेता, मीडिया और मतदाता—सभी जानते हैं कि समस्या नेतृत्व में है, लेकिन कोई खुलकर बोलने की हिम्मत नहीं करता क्योंकि कांग्रेस में गांधी परिवार पर सवाल उठाना लगभग राजनीतिक आत्महत्या है।
अगर कांग्रेस को पुनर्जीवित होना है, तो उसे नेतृत्व में विविधता, योग्यता आधारित पदोन्नति, जमीनी नेताओं को अवसर और खुली चर्चा की संस्कृति को अपनाना होगा। बिहार के नोटिस इस गहरी समस्या का समाधान नहीं हैं।
जब तक कांग्रेस अपनी असली समस्या—कांग्रेस नेतृत्व संकट—को स्वीकार नहीं करती, तब तक चुनाव के बाद बहाने बदलेंगे, आरोप बदलेंगे, लेकिन नतीजे नहीं। राहुल गांधी अच्छे इंसान हो सकते हैं, लेकिन अच्छा इंसान होना और अच्छा नेता होना अलग बातें हैं।
सवाल EVM का नहीं है, सवाल यह है कि क्या कांग्रेस के पास ऐसा नेतृत्व है जो जनता को अपने साथ जोड़ सके? इसका उत्तर सब जानते हैं, पर कहने की हिम्मत नहीं।
अस्वीकरण: यह लेख एक विश्लेषण है जिसका उद्देश्य लोकतांत्रिक बहस को मजबूत करना है, न कि किसी व्यक्ति या संगठन को आहत करना।

