भारतीय शादियों का खर्च: 44 दिनों में 6.5 लाख करोड़, 46 लाख विवाह
भारतीय शादियों का खर्च इस सीजन नई ऊंचाई पर
भारतीय शादियों का खर्च इस बार रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) के अनुसार, 1 नवंबर से 14 दिसंबर के बीच होने वाली लगभग 46 लाख शादियों पर भारतीय परिवार करीब ₹6.5 लाख करोड़ खर्च करने वाले हैं। भारतीय शादियों का खर्च हर साल बढ़ रहा है और यह आंकड़ा बताता है कि देश की अर्थव्यवस्था में इस परंपरा की भूमिका कितनी बड़ी है।
दिल्ली बनेगी शादी खर्च की राजधानी
इस पूरे खर्च का लगभग 30% यानी ₹1.8 लाख करोड़ अकेले दिल्ली से आएगा, जहां इस अवधि में लगभग 4.8 लाख शादियां होंगी। भारतीय शादियों का खर्च दिल्ली में सबसे अधिक देखने को मिलता है क्योंकि यहां शादियों की भव्यता और आयोजन का स्तर अन्य शहरों की तुलना में बड़ा होता है।
पिछले साल की तुलना में बढ़ोतरी
2024 में इसी शादी सीजन में कुल खर्च ₹5.9 लाख करोड़ था। इस साल भारतीय शादियों का खर्च ₹6.5 लाख करोड़ तक पहुंचने का मतलब है कि वर्ष-दर-वर्ष लगभग 10% की वृद्धि हुई है। यह बढ़ोतरी वेडिंग इंडस्ट्री की मजबूती और लोगों की बदलती प्राथमिकताओं का संकेत भी देती है।
शादी खर्च के प्रमुख क्षेत्र और बदलते ट्रेंड
आभूषण, कपड़े, वेन्यू बुकिंग, कैटरिंग, फोटोग्राफी, मेकअप और डेकोरेशन पर सबसे अधिक खर्च किया जाता है। सोने-चांदी के गहनों पर खर्च हमेशा सबसे अधिक रहता है, जबकि डिजाइनर परिधानों और उपहारों का बड़ा बाजार भी तेजी से बढ़ता है। वेन्यू और कैटरिंग का खर्च शादी बजट का बड़ा हिस्सा लेता है। इसके अलावा, प्री-वेडिंग शूट, ड्रोन शूट और सिनेमैटिक वीडियोग्राफी भी अब आम हो गई हैं।
डिजिटल इनविटेशन, डेस्टिनेशन वेडिंग्स, और इको-फ्रेंडली शादियों जैसे आधुनिक ट्रेंड भी तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। गोआ, उदयपुर और जयपुर जैसे शहर डेस्टिनेशन वेडिंग्स की पहली पसंद बन चुके हैं।
नवंबर-दिसंबर में शुभ मुहूर्त अधिक होने, सर्द मौसम और त्योहारों के बाद आर्थिक स्थिति बेहतर होने से यह सीजन बेहद खास माना जाता है। भारतीय शादियों का खर्च इन सभी कारणों से और अधिक बढ़ जाता है।
इस सीजन का ₹6.5 लाख करोड़ का खर्च होटल-हॉस्पिटैलिटी, खुदरा व्यापार, ज्वेलरी बिजनेस, छोटे व्यवसायों और ट्रांसपोर्ट-लॉजिस्टिक्स सेक्टर को मजबूत गति देता है। हालांकि बढ़ती महंगाई और सामाजिक दबाव के कारण परिवारों का बजट प्रभावित होता है और कई लोग लोन लेने को मजबूर हो जाते हैं।
कुल मिलाकर, यह आंकड़ा बताता है कि भारतीय संस्कृति में शादी सिर्फ एक पारिवारिक आयोजन नहीं बल्कि एक बड़े आर्थिक गतिविधि केंद्र के रूप में विकसित हो चुकी है। हालांकि खर्च अर्थव्यवस्था को गति देता है, परिवारों को अपनी क्षमता के अनुसार योजनाबद्ध तरीके से खर्च करना चाहिए।

