भारत क्यों पूर्ण क्रिप्टो फ्रेमवर्क का विरोध कर रहा है: वित्तीय स्थिरता बनाम डिजिटल नवाचार
भारत क्रिप्टो फ्रेमवर्क को लेकर भारत ने हाल के वर्षों में बेहद सावधानी बरती है। हालिया सरकारी दस्तावेजों के अनुसार, भारत व्यापक कानूनी ढांचा बनाने के बजाय केवल आंशिक निरीक्षण बनाए रखने की रणनीति अपना रहा है। वित्तीय स्थिरता बनाम डिजिटल नवाचार की बहस में यह निर्णय भारत की सतर्क नीति को दर्शाता है।
मुख्य कारण: सिस्टमिक जोखिम और नियामकीय चुनौतियां
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने चेतावनी दी है कि क्रिप्टोकरेंसी को मुख्यधारा की वित्तीय प्रणाली में शामिल करना सिस्टमिक जोखिम बढ़ा सकता है। RBI की रिपोर्ट बताती है कि भारत क्रिप्टो फ्रेमवर्क के तहत ऐसे जोखिमों को नियंत्रित करना कठिन होगा। विकेंद्रीकृत प्रकृति, जो किसी एक संस्था द्वारा नियंत्रित नहीं होती, नियामकीय अधिकारियों के लिए एक बड़ी चुनौती है। यह पारंपरिक वित्तीय नियंत्रण तंत्र को कमजोर बना सकती है और वित्तीय स्थिरता को खतरे में डाल सकती है।
वित्तीय स्थिरता का मुद्दा भी अहम है। भारत का वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र अभी भी परंपरागत बैंकिंग प्रणाली पर निर्भर है। सरकारी दस्तावेज बताते हैं कि डिजिटल परिसंपत्तियों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में वैधता न देने की रणनीति जानबूझकर अपनाई गई है।
वर्तमान नीति, कर नियंत्रण और निगरानी
2025 तक बिटकॉइन और एथेरियम जैसी क्रिप्टोकरेंसी भारत में कानूनी निविदा नहीं हैं, लेकिन व्यक्ति इन्हें कानूनी रूप से खरीद, बेच और रख सकते हैं। 2022 में लागू किया गया 1% TDS (टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स) नियम अभी भी लागू है, और इसमें कई महत्वपूर्ण संशोधन किए गए हैं। यह दर्शाता है कि भारत क्रिप्टो फ्रेमवर्क को पूरी तरह न अपनाकर आंशिक नियंत्रण के रास्ते पर चल रहा है।
भारत ने एकीकरण की बजाय “कंटेनमेंट” (नियंत्रण) रणनीति अपनाई है। इसका अर्थ है कि क्रिप्टो को मुख्यधारा बैंकिंग से अलग रखना, पारंपरिक वित्तीय सेवाओं से कनेक्शन सीमित करना, बिना पूर्ण वैधता दिए गतिविधियों पर निगरानी रखना, कर संग्रह के माध्यम से नियंत्रण करना और बड़े पैमाने पर अपनाने को हतोत्साहित करना। वित्तीय स्थिरता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका, यूरोप और जापान जैसे देश व्यापक नियामक ढांचे विकसित कर रहे हैं, जबकि भारत अपनी आर्थिक परिस्थितियों और वित्तीय स्थिरता के मद्देनज़र अलग दृष्टिकोण अपना रहा है। यह भारत क्रिप्टो फ्रेमवर्क नीति को वैश्विक संदर्भ में अद्वितीय बनाता है।
भविष्य की संभावनाओं में कई सकारात्मक पहलू हैं—वित्तीय जोखिमों से सुरक्षा, मुद्रा नीति पर नियंत्रण बनाए रखना, कर चोरी और मनी लॉन्ड्रिंग से बचाव सुनिश्चित करना। हालांकि चुनौतियां भी हैं जैसे तकनीकी नवाचार में पिछड़ना, डिजिटल अर्थव्यवस्था से वंचित रह जाना और युवा निवेशकों की निराशा।
निष्कर्षतः, भारत क्रिप्टो फ्रेमवर्क पर सावधानी से आगे बढ़ रहा है। यह रूढ़िवादी रणनीति वित्तीय हितों और स्थिरता को प्राथमिकता देने वाला विवेकपूर्ण निर्णय है। हालिया सरकारी दस्तावेजों और रॉयटर्स की रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करते हैं कि क्रिप्टोकरेंसी नियमों में भविष्य में बदलाव संभव हैं, लेकिन फिलहाल भारत का रुख संतुलित और नियंत्रित है। समय बताएगा कि यह नीति कितनी सफल साबित होती है।
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बाहरी लिंक सुझाव: रॉयटर्स की रिपोर्ट

