अगस्त क्यों चुना गया: भारत की स्वतंत्रता की असली वजह

15 अगस्त क्यों चुना गया - भारत की स्वतंत्रता दिवस की असली वजह

15 अगस्त क्यों चुना गया – माउंटबेटन की भूमिका और ऐतिहासिक कारण

15 अगस्त क्यों चुना गया – 15 अगस्त 1947 भारतीय इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया दिन है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर यही तारीख क्यों चुनी गई? क्या यह महज़ एक संयोग था या इसके पीछे कोई गहरा कारण था? आइए, इस ऐतिहासिक निर्णय की परतों को खोलकर देखते हैं कि कैसे भारत की आज़ादी की तारीख तय हुई।

ब्रिटिश सरकार की मूल योजना और बदलाव

1946 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति अत्यंत कमजोर हो चुकी थी। युद्ध ने ब्रिटिश खजाने को खाली कर दिया था और वे समझ गए थे कि भारत पर नियंत्रण बनाए रखना अब संभव नहीं है। 20 फरवरी 1947 को प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार जून 1948 तक भारत को पूर्ण स्वशासन प्रदान करेगी। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि मूल योजना के अनुसार भारत को 1948 में आज़ादी मिलनी थी, न कि 1947 में। तो फिर यह तारीख एक साल पीछे कैसे खिसक गई?

मार्च 1947 में लॉर्ड लुई माउंटबेटन भारत के अंतिम वायसराय के रूप में नियुक्त हुए। उन्होंने भारत की स्थिति का जायज़ा लेने के बाद एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया – उन्होंने सत्ता हस्तांतरण की तारीख जून 1948 से बढ़ाकर 15 अगस्त 1947 कर दी। यह निर्णय लगभग एक साल का समय कम कर देता था। माउंटबेटन के इस निर्णय के पीछे मुख्य कारण था कि कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच निरंतर बढ़ते तनाव और साम्प्रदायिक दंगों को देखते हुए, वे मानते थे कि जल्दी सत्ता हस्तांतरण ही इस स्थिति का समाधान हो सकता है।

15 अगस्त की तारीख का व्यक्तिगत कारण

अब सबसे दिलचस्प सवाल यह है कि 15 अगस्त क्यों चुना गया? इसके पीछे का कारण पूर्णतः व्यक्तिगत और संयोगवश था। लॉर्ड माउंटबेटन ने 15 अगस्त की तारीख इसलिए चुनी क्योंकि यह उनके लिए एक “भाग्यशाली” दिन था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान माउंटबेटन दक्षिण-पूर्व एशिया कमांड के सुप्रीम एलाइड कमांडर थे। 15 अगस्त 1945 को जापान ने मित्र राष्ट्रों के सामने आत्मसमर्पण किया था, और व्यक्तिगत रूप से माउंटबेटन ने ही इस आत्मसमर्पण को स्वीकार किया था। हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए जाने के बाद, जापानी सम्राट हिरोहितो ने 15 अगस्त 1945 को आत्मसमर्पण की घोषणा की थी। माउंटबेटन के लिए यह दिन उनकी सैन्य सफलता का प्रतीक था।

एक दिलचस्प तथ्य यह है कि जब एक पत्रकार ने माउंटबेटन से पूछा कि स्वतंत्रता की तारीख क्या होगी, तो उस समय तक उनके मन में कोई विशिष्ट तारीख नहीं थी। लेकिन उस प्रश्न के तुरंत बाद उन्होंने 15 अगस्त का फैसला कर लिया, क्योंकि यह उनके लिए व्यक्तिगत रूप से महत्वपूर्ण थी।

मई 1947 में माउंटबेटन ने अपना प्रसिद्ध “माउंटबेटन प्लान” प्रस्तुत किया, जिसमें मुख्य बिंदु थे: भारत को दो स्वतंत्र डोमिनियन – भारत और पाकिस्तान में विभाजित करना, प्रांतों को यह अधिकार देना कि वे किस संविधान सभा में शामिल होना चाहते हैं, 562 रजवाड़ों को भारत या पाकिस्तान में से किसी एक में विलय का विकल्प देना, और मूल योजना से एक साल पहले ही सत्ता हस्तांतरण करना।

4 जुलाई 1947 को भारतीय स्वतंत्रता विधेयक (Indian Independence Bill) ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ कॉमन्स में पारित हुआ। इस विधेयक में स्पष्ट रूप से 15 अगस्त 1947 को भारत और पाकिस्तान की स्वतंत्रता की तारीख घोषित की गई थी। एक दिलचस्प तथ्य यह है कि जबकि भारत 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाता है, पाकिस्तान 14 अगस्त को मनाता है। इसका कारण यह था कि माउंटबेटन ने पहले 14 अगस्त को कराची (तत्कालीन पाकिस्तान की राजधानी) में पाकिस्तान के स्वतंत्रता समारोह में भाग लिया, और फिर 15 अगस्त को दिल्ली में भारत के स्वतंत्रता समारोह में भाग लिया।

सर सिरिल रेडक्लिफ की अध्यक्षता में एक सीमा आयोग का गठन किया गया था, जिसका काम भारत और पाकिस्तान के बीच सीमाओं का निर्धारण करना था। रेडक्लिफ लाइन के रूप में प्रसिद्ध यह सीमा निर्धारण अत्यंत जटिल और विवादास्पद था।

15 अगस्त 1947 की आधी रात को भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपने प्रसिद्ध भाषण “ट्रिस्ट विथ डेस्टिनी” (नियति से मुलाकात) में कहा था: “वर्षों पहले हमने नियति से एक वायदा किया था, और अब समय आ गया है जब हम अपना वचन पूरा करेंगे – पूर्ण रूप से नहीं या सीमित मात्रा में नहीं, बल्कि बहुत बड़ी मात्रा में।”

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि 15 अगस्त की तारीख चुनने में ज्योतिषीय गणना भी शामिल थी। हिंदू पंचांग के अनुसार यह दिन शुभ माना गया था। हालांकि यह मुख्य कारण नहीं था, लेकिन इसने निर्णय को और मजबूती प्रदान की।

15 अगस्त 1947 खुशी के साथ-साथ दुख का भी दिन था। स्वतंत्रता के साथ ही विभाजन की त्रासदी भी शुरू हुई। लाखों लोगों को अपने घर छोड़ने पड़े, और साम्प्रदायिक दंगों में हजारों लोगों की जान गई। भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार के दस्तावेज़ों से पता चलता है कि माउंटबेटन के निर्णय की प्रक्रिया में व्यक्तिगत पसंद का बड़ा हाथ था। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा था कि 15 अगस्त उनके लिए “भाग्यशाली दिन” है।

अंततः, 15 अगस्त क्यों चुना गया इसका निष्कर्ष यह है कि यह तारीख राजनीति, व्यक्तिगत पसंद और ऐतिहासिक परिस्थितियों के मिश्रण से तय हुई। यह दिन माउंटबेटन के लिए जापान की पराजय की दूसरी वर्षगांठ के रूप में विशेष महत्व रखता था और आज भी यह हमारे इतिहास की जटिलता को दर्शाता है।

 

अधिक जानकारी के लिए भारत सरकार की आधिकारिक वेबसाइट देखें।

 

🛑 डिस्क्लेमर:
यह लेख लेखक की व्यक्तिगत संपादकीय राय पर आधारित है। इसमें व्यक्त विचार, टिप्पणियाँ और विश्लेषण पूरी तरह लेखक की अपनी विवेकपूर्ण समझ का परिणाम हैं। यह किसी संस्था, संगठन या आधिकारिक स्रोत की पुष्टि या समर्थन नहीं करते। पाठकों से अनुरोध है कि वे इसे केवल सूचना और विचार-विमर्श के उद्देश्य से लें।

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