महाराष्ट्र भाषा विवाद: ठाकरे-फडणवीस में टकराव बढ़ा

महाराष्ट्र हिंदी मराठी भाषा विवाद 2024

महाराष्ट्र में भाषा विवाद: हिंदी को लेकर ठाकरे बनाम फडणवीस

महाराष्ट्र भाषा विवाद ने एक बार फिर राज्य की राजनीति को गर्मा दिया है, जहां हिंदी को लेकर ठाकरे और फडणवीस आमने-सामने हैं।
महाराष्ट्र की सियासत में एक बार फिर भाषा विवाद जोर पकड़ता जा रहा है। इस बार मुद्दा है हिंदी को स्कूलों में अनिवार्य बनाने को लेकर। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का कहना है कि जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे, तब राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अंतर्गत गठित समिति की रिपोर्ट को उनकी सरकार ने मंजूरी दी थी, जिसमें हिंदी और अंग्रेज़ी को मराठी के साथ अनिवार्य करने की सिफारिश की गई थी।

NEP 2020 पर फडणवीस का दावा

फडणवीस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि जून 2021 में बनाई गई एक 18 सदस्यीय समिति ने NEP 2020 पर रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें मराठी, हिंदी और अंग्रेज़ी तीनों भाषाओं को अनिवार्य करने की बात कही गई थी। इस रिपोर्ट को जनवरी 2022 में ठाकरे सरकार ने कैबिनेट बैठक में मंजूरी दी थी।

उन्होंने सवाल उठाया कि क्या इस समिति में शामिल प्रख्यात विद्वान जैसे डॉ. रघुनाथ माशेलकर, भालचंद्र मुंगेकर और सुखदेव थोराट महाराष्ट्र विरोधी हैं? उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार ने हिंदी को केवल एक वैकल्पिक भाषा के रूप में जोड़ा है, अनिवार्य नहीं किया।

ठाकरे और राज ठाकरे का संयुक्त विरोध

शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे और MNS अध्यक्ष राज ठाकरे ने स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य बनाने के कथित निर्णय के खिलाफ 5 जुलाई को मुंबई में ‘विराट मोर्चा’ का एलान किया है। यह मार्च गिरगांव चौपाटी से आजाद मैदान तक निकाला जाएगा और इसे मराठी अस्मिता की रक्षा का प्रतीक बताया जा रहा है।

सांसद संजय राउत ने सोशल मीडिया पर लिखा, “जय महाराष्ट्र! अब ठाकरे ब्रांड का संयुक्त प्रदर्शन होगा।” उन्होंने बताया कि यह फैसला राज ठाकरे के सुझाव पर लिया गया और उद्धव ठाकरे ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।

उद्धव ठाकरे ने स्पष्ट किया, “हिंदी के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इसे थोपना स्वीकार नहीं।” वहीं, राज ठाकरे ने कहा, “यह मराठी भाषा और संस्कृति पर सीधा हमला है।”

सरकार की सफाई: हिंदी वैकल्पिक, मराठी अनिवार्य

राज्य के सांस्कृतिक मंत्री आशीष शेलार ने कहा, “यह सिर्फ एक गलतफहमी है। मराठी अनिवार्य है, हिंदी केवल वैकल्पिक भाषा है।” उन्होंने यह भी याद दिलाया कि हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लाने की नीति उद्धव ठाकरे सरकार के कार्यकाल में शुरू हुई थी।

मराठी भाषा मंत्री उदय सामंत ने भी डॉ. माशेलकर समिति की सिफारिश का हवाला देते हुए बताया कि हिंदी, अंग्रेजी और मराठी को कक्षा 1 से 12 तक पढ़ाने की बात की गई थी, जिसे ठाकरे सरकार ने मंजूरी दी थी।

विपक्ष का समर्थन और राजनीतिक निहितार्थ

राकांपा (SP) प्रमुख शरद पवार ने ठाकरे भाइयों के विरोध को सही ठहराते हुए कहा कि प्राथमिक स्तर पर बच्चों पर अतिरिक्त भाषाओं का बोझ नहीं डाला जाना चाहिए। महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने भी इस मुद्दे को राज्य की सांस्कृतिक पहचान से जोड़ते हुए समर्थन दिया।

यह पूरा विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब मुंबई नगर निगम चुनाव नजदीक हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह संयुक्त मोर्चा मराठी वोटबैंक को मजबूत करने की रणनीति हो सकती है।

निष्कर्ष: क्या यह भाषाई विवाद या सियासी रणनीति?

महाराष्ट्र में भाषा को लेकर राजनीति गर्म है। NEP 2020 की नीति का पालन करने और राजनीतिक लाभ लेने के बीच की रेखा धुंधली होती जा रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि ठाकरे भाइयों का यह संयुक्त मोर्चा क्या नया सियासी समीकरण बनाता है।

सभी नवीनतम अपडेट के लिए हमारे व्हाट्सएप चैनल से जुड़ें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!