भारत के विदेशी व्यापार में intangibles (अमूर्त) की अहम भूमिका

भारत के विदेशी व्यापार में intangibles (अमूर्त) की भूमिका लगातार बढ़ रही है और यह अब पारंपरिक वस्तुओं के निर्यात से अधिक महत्वपूर्ण साबित हो रही है। पहले जहां इस क्षेत्र में सफलता को स्टील, पेट्रोलियम, वस्त्र या मशीनरी जैसे माल निर्यात से आंका जाता था, वहीं अब सेवाओं और रेमिटेंस जैसे “intangibles (अमूर्त) प्रवाह” ने व्यापार को नई दिशा दी है।
भारत के विदेशी व्यापार में intangibles (अमूर्त) की भूमिका
सेवाएं जैसे आईटी, कंसल्टेंसी, वित्तीय सेवाएं, अनुसंधान और मीडिया से अर्जित विदेशी मुद्रा के साथ-साथ वैश्विक भारतीय प्रवासी द्वारा भेजी गई रेमिटेंस अब माल निर्यात से भी अधिक स्थिरता ला रही हैं। ये intangibles (अमूर्त) प्रवाह माल व्यापार घाटे को लगभग पूरा संतुलित कर देते हैं और चालू खाता घाटे को नियंत्रण में रखते हैं। विशेष बात यह है कि वैश्विक व्यापार विवाद, टैरिफ बढ़ोतरी और भू-राजनीतिक तनाव के बीच भी यह क्षेत्र अपेक्षाकृत सुरक्षित रहा है। उदाहरण के लिए, अमेरिका द्वारा ऊर्जा व्यापार से जुड़े भारतीय निर्यात पर लगाए गए टैरिफ ने भारत के भुगतान संतुलन को प्रभावित नहीं किया क्योंकि intangibles (अमूर्त) से होने वाली आमदनी मजबूत रही।
सेवाओं और रेमिटेंस का बढ़ता योगदान
भारत की सेवाओं का निर्यात अब केवल आईटी तक सीमित नहीं है, बल्कि वित्तीय सेवाएं, कंसल्टेंसी, मीडिया और अनुसंधान में भी विस्तार कर रहा है। इसी तरह, रेमिटेंस लगातार बढ़ रही है और भारत को वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता बना रही है। आरबीआई (RBI) की रिपोर्ट के अनुसार भारत हर साल 120 अरब डॉलर से अधिक की रेमिटेंस प्राप्त करता है। IMF की 2024 रिपोर्ट में भी उल्लेख किया गया है कि सेवाओं का निर्यात और रेमिटेंस भारत के बाहरी खातों की रीढ़ बन चुके हैं।
कोविड-19 महामारी के दौरान जब विश्व की अधिकांश अर्थव्यवस्थाएं सिकुड़ रही थीं, तब भी भारत की रेमिटेंस 4.6% की दर से बढ़ी। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार यह मजबूती दिखाती है कि intangibles (अमूर्त) प्रवाह माल निर्यात की तुलना में कहीं अधिक स्थिर हैं। वस्तु निर्यात जहां कीमतों और वैश्विक मांग पर निर्भर करते हैं, वहीं सेवाएं और रेमिटेंस कठिन दौर में भी स्थिर बनी रहती हैं।
भारत के आईटी और बिजनेस सेवाओं ने वैश्विक व्यापार तनावों के बावजूद लगातार विस्तार किया है। डिजिटल निर्यात अब GDP में अहम योगदान देने लगे हैं, और आईटी सेवाएं अकेले ही भारतीय अर्थव्यवस्था का लगभग 8% हिस्सा बनाती हैं। यह प्रवृत्ति बताती है कि intangibles (अमूर्त) प्रवाह बाहरी झटकों से भारतीय अर्थव्यवस्था को बचाने में किस तरह काम करते हैं।
रणनीतिक दृष्टिकोण और चुनौतियां
intangibles (अमूर्त) संपत्तियों को एक रणनीतिक अवसंरचना माना जा सकता है। जैसे तेल पाइपलाइन या बंदरगाह भौतिक अवसंरचना होते हैं, वैसे ही सेवाओं का निर्यात और रेमिटेंस नेटवर्क भी राष्ट्रीय परिसंपत्तियां हैं। डिजिटल व्यापार समझौते, डेटा सुरक्षा संधियां और पेशेवर योग्यताओं की पारस्परिक मान्यता इन प्रवाहों को और सुरक्षित एवं विस्तारित कर सकती हैं। विश्व बैंक के शोध से यह सिद्ध हुआ है कि इस तरह की संस्थागत व्यवस्थाएं सेवाओं के निर्यात को तेजी से बढ़ाती हैं।
रेमिटेंस को विकास गुणक भी कहा जाता है। जिन परिवारों को रेमिटेंस मिलती है वे शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास में ज्यादा निवेश करते हैं। यदि सरकार रेमिटेंस ट्रांसफर लागत को घटाने और प्रवासी बांड जारी करने जैसे कदम उठाए तो इन प्रवाहों को राष्ट्रीय बुनियादी ढांचे की ओर मोड़ा जा सकता है। विश्व बैंक का अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर यदि रेमिटेंस लागत को 3% तक घटा दिया जाए तो विकासशील देशों को हर साल अतिरिक्त 30 अरब डॉलर की प्राप्ति होगी। भारत जैसे देश के लिए यह छोटा सुधार भी बड़ी वित्तीय मदद साबित हो सकता है।
फिर भी चुनौतियां बनी हुई हैं। सेवाओं का निर्यात अभी भी अत्यधिक रूप से आईटी और बीपीओ पर निर्भर है। कंसल्टेंसी, अनुसंधान और अन्य क्षेत्रों में विविधीकरण का हिस्सा अपेक्षाकृत छोटा है। साथ ही, intangibles (अमूर्त) उतनी नौकरियां नहीं पैदा करते जितनी विनिर्माण कर सकता है। कम और मध्यम कौशल वाले श्रमिकों को रोजगार देने के लिए विनिर्माण को प्रतिस्पर्धी बनाना जरूरी है।
ऊर्जा आयात पर निर्भरता भी एक गंभीर कमजोरी है। intangibles (अमूर्त) प्रवाह व्यापार घाटे को कुछ हद तक संतुलित कर सकते हैं लेकिन तेल कीमतों में उतार-चढ़ाव या ऊर्जा क्षेत्र पर प्रतिबंधों से देश को पूरी तरह नहीं बचा सकते। दीर्घकालिक रणनीति में नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश, आपूर्ति का विविधीकरण और रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार का निर्माण शामिल होना चाहिए।
भारत के लिए एक द्वि-पटरी निर्यात रणनीति आवश्यक है। पहला, intangibles (अमूर्त) के व्यापार को उच्च मूल्य श्रृंखला तक ले जाना जैसे अनुसंधान एवं विकास, एआई-आधारित सेवाएं, डिजाइन और वित्तीय नवाचार। दूसरा, प्रतिस्पर्धी विनिर्माण को तेज करना जिसमें इलेक्ट्रॉनिक्स, दवा उद्योग और हरित तकनीक शामिल हैं। विनिर्माण क्षेत्र न केवल निर्यात बढ़ाएगा बल्कि रोजगार के अवसर भी पैदा करेगा। इस प्रकार सेवाएं बाहरी खातों को स्थिर बनाएंगी और विनिर्माण समावेशी विकास को गति देगा।
निष्कर्ष: भारत के विदेशी व्यापार में intangibles (अमूर्त) अब एक छिपे हुए सहारे के रूप में उभर रहे हैं। सेवाएं और रेमिटेंस माल निर्यात से आगे निकलकर वैश्विक झटकों से सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं। हालांकि, केवल उन्हीं पर निर्भर रहना जोखिमपूर्ण हो सकता है। एक लचीली अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी है कि intangibles (अमूर्त) को रणनीतिक संपत्ति मानते हुए विनिर्माण, ऊर्जा सुरक्षा और समावेशी रोजगार के साथ संतुलन बनाया जाए। यही संतुलन तय करेगा कि बाहरी स्थिरता भारत को सतत और न्यायसंगत विकास की ओर कैसे ले जाती है।