गणेश चतुर्थी की कथा और चांद देखने का निषेध

गणेश चतुर्थी कथा हिंदू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे हर वर्ष भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को पूरे श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन को भगवान गणेश के जन्मदिवस के रूप में जाना जाता है। भक्त गणेश जी को विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता मानते हैं, इसलिए उनकी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। परंपरा के अनुसार इस दिन चांद नहीं देखा जाता, क्योंकि गणेश चतुर्थी कथा में इसके पीछे गहरी पौराणिक मान्यता जुड़ी हुई है। आइए विस्तार से जानते हैं इसकी संपूर्ण कथा और महत्व।
गणेश जी का जन्म और वरदान
प्राचीन पुराणों में वर्णन मिलता है कि माता पार्वती ने अपने शरीर के मैल से एक बालक की रचना की और उसे अपने द्वार पर पहरा देने की जिम्मेदारी दी। जब भगवान शिव घर लौटे और उस बालक ने उन्हें अंदर जाने से रोका, तो शिव जी ने क्रोधित होकर उसका सिर काट दिया। यह देखकर माता पार्वती अत्यंत दुखी हो गईं। पार्वती के शोक को दूर करने के लिए भगवान शिव ने अपने गणों को उत्तर दिशा की ओर भेजा और कहा कि जो पहला जीव मिले उसका सिर लाना। गण हाथी का सिर लेकर आए और शिव जी ने वह सिर बालक के शरीर पर स्थापित कर दिया। इस प्रकार गणेश जी का जन्म हुआ। इसके बाद भगवान शिव ने उन्हें अनेक वरदान दिए जिनमें प्रथम पूज्य होने का आशीर्वाद, विघ्नहर्ता कहलाने का सम्मान और बुद्धि एवं विद्या के देवता का स्थान शामिल था। इसी कारण गणेश चतुर्थी कथा को विशेष महत्व दिया जाता है।
स्यमंतक मणि और चांद देखने का निषेध
गणेश चतुर्थी पर चांद देखने का निषेध द्वापर युग की एक प्रसिद्ध घटना से जुड़ा है। यह घटना स्यमंतक मणि नामक दिव्य रत्न से संबंधित है। यादव वंश के सत्राजित के पास यह मणि थी, जो प्रतिदिन आठ भार सोना उत्पन्न करती थी। उसने यह मणि अपने भाई प्रसेनजित को दे दी। एक दिन प्रसेनजित शिकार के लिए वन में गया, लेकिन वहां एक सिंह ने उसे मार डाला और मणि अपने कब्जे में कर ली। बाद में जामवंत ने सिंह को मारकर मणि को अपने पास रख लिया।
जब प्रसेनजित घर नहीं लौटा तो नगरवासियों को संदेह हुआ कि भगवान कृष्ण ने मणि पाने के लिए उसकी हत्या की है। इस झूठे आरोप से व्यथित होकर कृष्ण जी ने सच्चाई की खोज की और अंततः मणि को वापस लाकर सभी संदेह दूर किए। किंतु इस घटना से दुखी होकर कृष्ण जी ने चांद को श्राप दिया कि जो भी व्यक्ति गणेश चतुर्थी के दिन तुम्हें देखेगा, उस पर मिथ्या कलंक लगेगा। यही कारण है कि गणेश चतुर्थी कथा में चांद देखने का निषेध बताया गया है।
चांद देखने के दुष्परिणाम और निवारण
मान्यताओं के अनुसार गणेश चतुर्थी पर यदि कोई व्यक्ति चांद देख ले तो उस पर झूठे आरोप लग सकते हैं। कहा जाता है कि ऐसा व्यक्ति सामाजिक बदनामी, मानसिक पीड़ा और कार्यों में बाधा जैसी कठिनाइयों का सामना करता है। यह परंपरा हमें यह भी सिखाती है कि मिथ्या आरोपों की पीड़ा कितनी कठिन होती है और संयम का जीवन में कितना महत्व है।
यदि गलती से कोई व्यक्ति इस दिन चांद देख ले तो उपाय भी बताए गए हैं। इसमें भगवान कृष्ण की स्तुति करना, गणेश जी की विशेष पूजा करना, स्यमंतक मणि कथा का पाठ करना और सामर्थ्य अनुसार दान-पुण्य करना शामिल है। साथ ही पारंपरिक श्लोक – “सिंहः प्रसेनमवधीत् सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः॥” – का जाप करने से भी दोष दूर माना जाता है।
गणेश चतुर्थी की पूजा विधि और महत्व
गणेश चतुर्थी पर पूजा विधि अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन घर में गणेश जी की मूर्ति स्थापित की जाती है। पंचामृत स्नान के बाद उन्हें लाल या पीले वस्त्र पहनाए जाते हैं, चंदन और रोली का तिलक किया जाता है तथा लाल फूल और दूर्वा अर्पित किए जाते हैं। मोदक और लड्डू गणेश जी का प्रिय भोग है, इसलिए इन्हें विशेष रूप से चढ़ाया जाता है। अंत में आरती करके मनोकामना पूर्ण होने की प्रार्थना की जाती है।
गणेश चतुर्थी कथा न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह त्योहार विघ्न निवारण, ज्ञान प्राप्ति और सुख-समृद्धि का प्रतीक है। वहीं सामाजिक स्तर पर यह सामुदायिक एकता, पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक परंपराओं को आगे बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है। आधुनिक समय में पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए मिट्टी की मूर्तियों और प्राकृतिक रंगों का उपयोग करने पर विशेष बल दिया जाता है।
निष्कर्ष
गणेश चतुर्थी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं बल्कि जीवन मूल्यों का संदेश देने वाला दिन है। चांद देखने की परंपरा हमें संयम और विश्वास की शक्ति का स्मरण कराती है। यह त्योहार हमें प्रेरित करता है कि जीवन में आने वाली बाधाओं से भयभीत न होकर गणेश जी के आशीर्वाद से उनका डटकर सामना करें। आज के युग में हमें परंपराओं का सम्मान करते हुए पर्यावरण और समाज की भलाई का भी ध्यान रखना चाहिए। गणपति बप्पा मोरया के जयकारे के साथ यह पर्व सभी को एक सूत्र में बांध देता है।