दिल्ली हर साल 51 मिमी की दर से धंस रही है, 17 लाख लोग संकट में
एक हालिया अध्ययन में खुलासा हुआ है कि दिल्ली हर साल 51 मिमी धंस रही है, जो भारत के किसी भी अन्य महानगर की तुलना में सबसे तेज़ दर है। यह चिंताजनक स्थिति करीब 17 लाख लोगों के लिए बड़ा खतरा बन चुकी है। विशेषज्ञों ने चेताया है कि अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह संकट और गहराएगा।
भूजल दोहन बना मुख्य कारण
शोध रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली हर साल 51 मिमी धंस रही है का प्रमुख कारण भूमिगत जल का अत्यधिक दोहन है। जलवायु परिवर्तन, असंतुलित विकास और चरम मौसमी घटनाओं ने मिलकर इसे एक जटिल और गंभीर संकट में बदल दिया है। लगातार बढ़ती आबादी के चलते जल निकासी पर दबाव बढ़ रहा है, जिससे धरती की सतह धीरे-धीरे नीचे जा रही है।
196 वर्ग किमी क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित
अध्ययन के अनुसार, दिल्ली का लगभग 196 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र इस समस्या से प्रभावित है। विशेष रूप से बिजवासन, फरीदाबाद और गाजियाबाद जैसे इलाके सबसे ज्यादा जोखिम में हैं। इन इलाकों में जमीन धंसने की गति लगातार बढ़ रही है, जिससे स्थानीय ढांचे और भवनों की स्थिरता पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
अन्य शहरों की तुलना में सबसे तेज़ दर
अध्ययन में देश के अन्य प्रमुख महानगरों की तुलना में पाया गया कि दिल्ली की स्थिति सबसे अधिक गंभीर है:
- मुंबई: 20.47 मिमी प्रति वर्ष
- बेंगलुरु: 31.45 मिमी प्रति वर्ष
- कोलकाता: 07.44 मिमी प्रति वर्ष
- चेन्नई: 48.20 मिमी प्रति वर्ष
- दिल्ली: 51 मिमी प्रति वर्ष (सर्वाधिक)
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि दिल्ली हर साल 51 मिमी धंस रही है, जो अन्य सभी महानगरों की तुलना में सबसे अधिक है।
खतरे की घंटी और समाधान
विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थिति भवनों, सड़कों और बुनियादी ढांचे के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रही है। इससे भूकंप और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के खतरे में भी इजाफा हुआ है। भूजल स्तर में लगातार गिरावट, अनियंत्रित निर्माण और जल संसाधनों के दुरुपयोग ने स्थिति को बद से बदतर बना दिया है।
शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि भूजल प्रबंधन, वर्षा जल संचयन और सतत विकास योजनाओं को तुरंत लागू करने की जरूरत है। अगर सरकार और नागरिक समाज मिलकर कदम उठाएं, तो इस आपदा को टाला जा सकता है।
दिल्ली में यह संकट सिर्फ पर्यावरणीय नहीं बल्कि सामाजिक-आर्थिक चुनौती भी है, जो भविष्य की पीढ़ियों को प्रभावित कर सकती है। समय रहते इसे नियंत्रित करना बेहद जरूरी है।
बाहरी प्रामाणिक स्रोत लिंक: संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP)

