ट्रंप की विदेश नीति: कैसे ‘अमेरिका फर्स्ट’ ने दुनिया में बढ़ाया तनाव और अलगाव
ट्रंप की विदेश नीति ने अमेरिका की वैश्विक छवि और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को गहराई से प्रभावित किया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का ‘अमेरिका फर्स्ट’ दृष्टिकोण अब धीरे-धीरे ‘अमेरिका अलोन’ में बदलता दिखाई दे रहा है। जैसे-जैसे समय बीत रहा है, अमेरिका अपने पुराने सहयोगियों से दूर और नए विरोधों के बीच फंसता जा रहा है। भारत, रूस, चीन, जापान, जर्मनी, कनाडा और ब्राजील जैसे देशों के साथ तनावपूर्ण संबंध इसका सबसे बड़ा प्रमाण हैं।
इज़राइल को ट्रंप की सख्त चेतावनी
हाल ही में ट्रंप की विदेश नीति के अंतर्गत, उन्होंने TIME मैगज़ीन को दिए एक साक्षात्कार में इज़राइल को स्पष्ट चेतावनी दी कि यदि इज़राइल वेस्ट बैंक को अपने क्षेत्र में मिलाता है, तो वह अमेरिका का पूरा समर्थन खो देगा। ट्रंप ने कहा, “यह अब संभव नहीं है, क्योंकि मैंने अरब देशों से वचन दिया है।” यह बयान अमेरिकी-इज़राइल संबंधों में ऐतिहासिक बदलाव की ओर संकेत करता है। इस तरह के बयान से स्पष्ट है कि ट्रंप अपने निर्णयों में आवेगपूर्ण और अप्रत्याशित हैं, जिससे पारंपरिक कूटनीति की नींव कमजोर हो रही है।
कनाडा के साथ व्यापारिक तनाव
23 अक्टूबर 2025 को ट्रंप ने घोषणा की कि अमेरिका कनाडा के साथ सभी व्यापार वार्ताओं को समाप्त कर रहा है। उन्होंने कनाडा पर “नकली विज्ञापन” और “अदालतों में हस्तक्षेप” के आरोप लगाए। इससे पहले ट्रंप ने कनाडाई आयात पर 35% टैरिफ लगाया था। अमेरिका और कनाडा के बीच दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारिक संबंध है, लेकिन इस कदम ने दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को झटका दिया।
ट्रंप की विदेश नीति केवल कनाडा तक सीमित नहीं रही। चीन के साथ उनका व्यापार युद्ध वैश्विक बाजारों में अस्थिरता लेकर आया। ट्रंप ने चीन पर भारी टैरिफ लगाए, जिससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला बाधित हुई और अमेरिकी उपभोक्ताओं पर आर्थिक दबाव बढ़ा। यूरोपीय संघ, विशेषकर जर्मनी और फ्रांस के साथ भी संबंध नाटो, जलवायु परिवर्तन और व्यापार असंतुलन जैसे मुद्दों पर बिगड़े।
भारत के साथ भी ट्रंप का रवैया सख्त रहा। उन्होंने भारतीय आयात पर टैरिफ लगाकर व्यापारिक संतुलन को चुनौती दी और कई बार वार्ताओं को रोक दिया। जापान और दक्षिण कोरिया से रक्षा खर्च में अधिक योगदान की मांग ने एशियाई साझेदारों के साथ विश्वास में कमी पैदा की। ब्राजील और लैटिन अमेरिका में ट्रंप की आप्रवासन नीतियों ने विवाद और असंतोष को जन्म दिया।
अहंकारी नीति के दूरगामी परिणाम
‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति का प्रभाव अब अमेरिकी कूटनीति, अर्थव्यवस्था और सुरक्षा पर दिखने लगा है। विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप की विदेश नीति अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अकेला कर रही है। पारंपरिक सहयोगी अब वैकल्पिक गठबंधन बना रहे हैं और अमेरिका पर निर्भरता घटा रहे हैं।
व्यापार युद्ध और बढ़े हुए टैरिफ से अमेरिकी व्यवसायों को नुकसान हुआ है। विश्वसनीयता संकट ने अमेरिकी नेतृत्व की साख को कमजोर किया है। इससे वैश्विक स्तर पर चीन और रूस जैसे देश इस खाली जगह को भरने की कोशिश कर रहे हैं। अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताएं सवालों के घेरे में हैं और उसकी कूटनीतिक क्षमता कमजोर होती जा रही है।
ट्रंप की विदेश नीति की सबसे बड़ी आलोचना यह है कि उसने वैश्विक स्थिरता को खतरे में डाल दिया है। अमेरिका जो कभी विश्व नेतृत्व का प्रतीक था, अब अलगाव और अविश्वास का पर्याय बनता जा रहा है। यदि यह नीति जारी रही, तो एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था उभर सकती है जहां अमेरिका की भूमिका सीमित होगी।
समय बताएगा कि क्या ट्रंप की विदेश नीति अमेरिका को वैश्विक मंच पर टिकाए रख सकेगी या फिर वह अपनी ऐतिहासिक नेतृत्व की स्थिति खो देगा। फिलहाल इतना तय है कि एकतरफावाद और अहंकार ने अमेरिका के सहयोगियों को दूर कर दिया है और ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति ने उसे ‘अमेरिका अलोन’ बना दिया है।

