अमेरिकी दादागिरी: कैसे ट्रंप की नीतियों ने अमेरिका को अकेला कर दिया

अमेरिकी दादागिरी और ट्रंप की नीतियों का वैश्विक प्रभाव

अमेरिकी दादागिरी का असर अब दुनिया खुलकर देख रही है। वह दिन दूर नहीं जब अमेरिका विश्व की महाशक्ति से एक अकेला द्वीप बन जाएगा। ट्रंप प्रशासन की अहंकारी नीतियों ने वह कर दिखाया है जो किसी दुश्मन देश ने नहीं किया—अमेरिका को उसके सहयोगियों से अलग-थलग कर दिया।

अमेरिकी दादागिरी और अंदरूनी संकट

अमेरिका में अंदर से अराजकता और बाहर से घमंड ने स्थिति को विस्फोटक बना दिया है। सरकार चलाने का बजट तक पास नहीं हो पा रहा। फेडरल जज ने 4,000 कर्मचारियों की छंटनी को रोकते हुए कहा—”यह कानून के खिलाफ है”। $33 ट्रिलियन का भयावह कर्ज सिर पर सवार है और अमेरिकी कंपनियां देश छोड़ने की तैयारी में हैं। वहीं बाहर चीन और रूस को धमकियां, टैरिफ की बौछार और आर्थिक हमलों की रणनीति अमेरिका को और अलग-थलग कर रही है।

टैरिफ और जनता की जेब पर बोझ

ट्रंप प्रशासन अमेरिकी दादागिरी के जरिए टैरिफ से कमाए पैसों पर इतरा रहा है। लेकिन यह पैसा अमेरिकी नागरिकों ने अपनी जेब से महंगे आयातित सामान खरीदकर भरा। यह कैसी जीत है जहां अपने ही लोग हारते हैं? ट्रंप की टैरिफ नीति ने घरेलू बाजार में महंगाई और असंतोष को जन्म दिया है।

चीन और रूस का पलटवार

चीन के विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी दादागिरी को “आर्थिक जबरदस्ती” बताया। जब अमेरिका ने चीन पर रूसी तेल खरीदने के लिए दबाव बनाया, चीन ने अपने वैध व्यापार का बचाव किया। दूसरी ओर, विडंबना यह है कि खुद यूक्रेन भारत से रूसी तेल खरीद रहा है। यह दोहरा मापदंड दुनिया समझ रही है।

डिफेंस सेक्रेटरी पीट हेगसेथ ने रूस को चेतावनी दी—“युद्ध खत्म करो या कीमत चुकाओ।” मगर सवाल यह है कि अगर अमेरिका इतना शक्तिशाली है तो युद्ध अभी तक क्यों नहीं खत्म हुआ?

डॉलर का पतन और भारत की रणनीति

दुनिया अमेरिकी दादागिरी से मुंह मोड़ रही है। डॉलर में निवेश घट रहा है, रूस-चीन-भारत का गठजोड़ मजबूत हो रहा है और स्थानीय मुद्राओं में व्यापार बढ़ रहा है। भारत ने समझदारी दिखाते हुए रूस से सस्ता तेल खरीदा और अमेरिकी एकाधिकार को चुनौती दी। उधर अमेरिकी कंपनियां अस्थिर नीतियों से परेशान होकर देश छोड़ने पर विचार कर रही हैं। राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक अनिश्चितता और वैश्विक अलगाव इसका कारण बन रहे हैं।

मित्रता से शत्रुता तक

अमेरिकी दादागिरी का अंजाम अब स्पष्ट दिखने लगा है। पुराने मित्र देश दूर जा रहे हैं, नए गठबंधन बिना अमेरिका के बन रहे हैं, और आर्थिक केंद्र एशिया की ओर खिसक रहा है। अमेरिकी प्रभुत्व अब चुनौती में है। अमेरिकी जज की टिप्पणी—”राष्ट्र कानूनों से चलता है, और यहां जो हो रहा है वह कानून के दायरे में नहीं है”—ने घरेलू संकट को और उजागर कर दिया।

इतिहास गवाह है कि हर साम्राज्य का अंत होता है। आंतरिक अराजकता, बाहरी अलगाव और आर्थिक असंतुलन के चलते अमेरिका एक खतरनाक मोड़ पर खड़ा है। सवाल यह है—क्या ट्रंप की आक्रामक नीतियां अमेरिका को फिर से महान बनाएंगी या इतिहास के पन्नों में एक चेतावनी बनकर रह जाएंगी?

जब कोई देश अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल करता है, तो वह अपने ही पतन की नींव रखता है।

 

🌐 बाहरी लिंक: Brookings Institution

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