मेक इन इंडिया: 11 वर्षों की सफलता और वैश्विक प्रभाव
मेक इन इंडिया अभियान ने 25 सितंबर 2025 को अपने 11 वर्ष पूरे कर लिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह महत्वाकांक्षी योजना 2014 में शुरू हुई थी, जब भाजपा सरकार का पहला वर्ष था। इसका उद्देश्य भारत को आत्मनिर्भरता की दिशा में ले जाना और देश को वैश्विक विनिर्माण शक्ति के रूप में स्थापित करना था। 11 वर्षों की इस यात्रा ने भारत की आर्थिक और औद्योगिक शक्ति को मजबूत आधार प्रदान किया है।
मेक इन इंडिया: 11 वर्षों की उपलब्धियां
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मेक इन इंडिया ने 2014 से 2024 के बीच 667 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आकर्षित किया। यह रिकॉर्ड दर्शाता है कि अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों का विश्वास भारत की विनिर्माण क्षमता पर लगातार बढ़ रहा है। साथ ही विनिर्माण क्षेत्र में सकल मूल्य संवर्धन (GVA) में 81% की वृद्धि दर्ज की गई है, जिससे भारत न केवल उत्पादन हब बना है बल्कि उच्च गुणवत्ता और मूल्य संवर्धन के साथ निर्माण में अग्रसर हुआ है।
मोबाइल विनिर्माण और निर्यात
आज भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता बन चुका है। यह उपलब्धि डिजिटल इंडिया और तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में ऐतिहासिक कदम है। मोबाइल निर्माण की सफलता ने न केवल घरेलू बाजार को मजबूती दी है, बल्कि निर्यात में भी भारी वृद्धि की है। 11 वर्षों में ₹28.25 लाख करोड़ का विनिर्माण निर्यात दर्ज किया गया है, जबकि अन्य क्षेत्रों में ₹15.6 लाख करोड़ का योगदान रहा है। इन उपलब्धियों ने भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में स्थापित किया है।
रोजगार और क्षेत्रीय योगदान
मेक इन इंडिया ने रोजगार के नए अवसर पैदा किए हैं। विनिर्माण, तकनीकी और इंजीनियरिंग क्षेत्रों में लाखों लोगों को नौकरियां मिलीं। कुशल और अकुशल दोनों प्रकार के श्रमिकों को लाभ पहुंचा है। ऑटोमोबाइल क्षेत्र में घरेलू और निर्यात बाजार दोनों में वृद्धि हुई है, विशेषकर इलेक्ट्रिक वाहनों के विनिर्माण में तेजी आई है। फार्मास्युटिकल्स क्षेत्र में भारत ने “फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड” की भूमिका निभाते हुए जेनेरिक दवाओं का वैश्विक स्तर पर निर्यात बढ़ाया है। टेक्सटाइल और परिधान क्षेत्र में आधुनिकीकरण से पारंपरिक उद्योगों को नई ऊर्जा मिली है, जबकि रक्षा विनिर्माण में आत्मनिर्भरता की दिशा में स्वदेशी उत्पादों का विकास हुआ है।
मोदी सरकार की दृष्टि और आत्मनिर्भर भारत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार, मेक इन इंडिया भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। “आत्मनिर्भर भारत” का सपना इसी पहल के माध्यम से साकार हो रहा है। कोविड-19 महामारी के बाद जब दुनिया ने आपूर्ति श्रृंखला में विविधीकरण की आवश्यकता महसूस की, तो भारत एक भरोसेमंद विकल्प बनकर उभरा। इस पहल ने भारत की वैश्विक भूमिका को और भी मजबूत किया है।
सरकार ने चुनौतियों का समाधान भी निकाला है। कुशल श्रमिकों की कमी दूर करने के लिए स्किल इंडिया जैसी योजनाएं शुरू की गईं। औद्योगिक गलियारों का विकास और बंदरगाहों व हवाई अड्डों का आधुनिकीकरण किया गया। नीतिगत सुधारों में जीएसटी का कार्यान्वयन और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के कदम शामिल हैं, जिन्होंने निवेशकों के लिए भारत को और आकर्षक बनाया है।
भविष्य की संभावनाएं
मेक इन इंडिया के लिए 2047 तक का लक्ष्य तय किया गया है। इस दौरान भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने का सपना देखा गया है। नई तकनीकों जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), रोबोटिक्स और ऑटोमेशन को शामिल किया जा रहा है। सरकार हरित और पर्यावरण-अनुकूल विनिर्माण प्रक्रियाओं पर भी ध्यान दे रही है, जिससे टिकाऊ विकास सुनिश्चित हो सके।
ऑटोमोबाइल, फार्मास्युटिकल्स, टेक्सटाइल और रक्षा जैसे क्षेत्रों में हुई प्रगति भविष्य के लिए भारत की औद्योगिक शक्ति को और मजबूत करेगी। इस पहल के जरिए भारत न केवल आर्थिक विकास करेगा, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में स्थायी और निर्णायक भूमिका भी निभाएगा।
निष्कर्ष: वैश्विक मंच पर भारत की पहचान
11 वर्षों की यात्रा में मेक इन इंडिया ने 667 अरब डॉलर एफडीआई आकर्षित किया, विनिर्माण क्षेत्र में 81% की वृद्धि दर्ज की और भारत को विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता बनाया। यह उपलब्धियां इस बात का प्रमाण हैं कि भारत तेजी से औद्योगिक शक्ति बन रहा है।
यह पहल न केवल आर्थिक विकास और रोजगार सृजन का आधार बनी है, बल्कि भारत की वैश्विक छवि को भी मजबूत किया है। आने वाले वर्षों में मेक इन इंडिया भारत को विनिर्माण महाशक्ति बनाने में निर्णायक भूमिका निभाएगा और आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करेगा।
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यह लेख सरकारी आंकड़ों और मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर तैयार किया गया है।

