यूक्रेन युद्ध और अलास्का शिखर सम्मेलन: अधूरी शुरुआत

यूक्रेन युद्ध पर नजरें टिकी थीं जब 15 अगस्त 2025 को अलास्का में ट्रंप और पुतिन की बहुप्रतीक्षित मुलाकात हुई। लेकिन यह बैठक किसी ठोस समझौते में नहीं बदल सकी। ट्रंप का दावा है कि पुतिन और यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की चाहते हैं कि वह भविष्य की शांति वार्ता में शामिल हों, लेकिन पुतिन की तरफ से अभी तक कोई स्पष्ट पुष्टि नहीं मिली है।
अलास्का वार्ता और यूक्रेन युद्ध की हकीकत
पुतिन ने ट्रंप का स्वागत “गुड आफ्टरनून, डियर नेबर” कहकर किया, जिससे रूस-अमेरिका की भौगोलिक निकटता को उजागर किया गया। ट्रंप ने मुलाकात को 10 में से 10 अंक दिए, लेकिन पुतिन ने कहा: “अगली बार मास्को में।” सवाल यह है कि तीन साल लंबे यूक्रेन युद्ध की भारी कीमत के बाद भी सुरक्षा गारंटी क्यों और कैसे स्वीकार की जाए?
अमेरिकी हथियार उद्योग को इस युद्ध से बड़ा फायदा हुआ है। यदि संघर्ष रुकता है तो अमेरिका के डिफेंस सेक्टर को नुकसान उठाना पड़ेगा। ऐसे में ट्रंप के दावों पर भरोसा करना दुनिया के लिए आसान नहीं है।
नाटो और सुरक्षा गारंटी
खबरों के अनुसार पुतिन ने यूक्रेन के लिए नाटो-स्टाइल सुरक्षा पर सहमति जताई है, लेकिन इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई। यूरोपीय नेताओं की व्हाइट हाउस यात्रा दिखाती है कि नाटो देश इस समझौते को लेकर आशंकित हैं।
भारत की रणनीति और वैश्विक समीकरण
भारत अब स्पष्ट रूप से ब्रिक्स की तरफ झुकाव दिखा रहा है और अमेरिकी आयात पर निर्भरता घटाने की कोशिश कर रहा है। इससे भारत-अमेरिका संबंधों में तल्खी भी बढ़ रही है। सवाल यह है कि भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति कैसे बनाए रखेगा?
पाकिस्तान, चीन और आर्थिक खतरे
पाकिस्तान इस उथल-पुथल में अवसर देख रहा है, जबकि चीन की नीति अनिश्चित बनी हुई है। साथ ही पूरी दुनिया आर्थिक मंदी की तरफ बढ़ रही है, जिससे भू-राजनीतिक गठबंधनों का महत्व और बढ़ गया है।
निष्कर्ष साफ है कि यूक्रेन युद्ध का अंत चाहे जो हो, श्रेय ट्रंप लेंगे। लेकिन अभी यह सिर्फ नाटकीय शुरुआत है। भारत के लिए चुनौती है अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने की।
स्रोत: Brookings – Ukraine Conflict Analysis